राज़े ज़े-अज़ल अंदर दिल-ए-उश्शाक़ निहान-अस्त
राज़े ज़े-अज़ल अंदर दिल-ए-उश्शाक़ निहान-अस्त
ज़ाँ राज़ ख़बर याफ़्त कसे रा कि अ'यान-अस्त
सृष्टि के आदि के रहस्य प्रेमियों के हृदय में गुप्त हैं । इस भेद को वही जान सकता है, जिस पर वह प्रकट हो।
ऊ रा ज़े-पस-ए-पर्द:-ए-उश्शाक़ दुई नीस्त
ज़ाँ मिस्ल न-दारद कि शहंशाह-ए-जहाँनस्त
वह अपने प्रेमियों से किसी प्रकार का छिपावा नहीं रखता है। और वह अनुपम इसीलिये कहा जाता है कि वह सम्पूर्ण संसार का बादशाह है।
गोयन्द अज़ींं मैदान आँ रा कि दर आमद
के ख़्वाजः दिल-ओ-रूह-ओ-रवानत ज़े-रवानस्त
प्रेमियों को इस क्षेत्र में घुसने की (प्रविष्ट होने की) आज्ञा अवश्य दी जाती है परन्तु उनके दिलों और प्राणों की इस प्रणयक्षेत्र में नज़र ली जाती है।
गर माह-ए-हिलाल आयद दर ना'त-ए-कसुफ़स्त
वर तीर-ए-विसाल आयद बर बस्तः कमानस्त
यदि उसका चन्द्रमुख तेरी दृष्टि से ओझल हो गया है, यदि तेरी दृष्टि के सम्मुख एक मोटा आवरण आ गया है, तो इसमें तेरे ही विचारों का अपराध है। और यदि उसके मिलन में किसी प्रकार का सन्देह है तो इसमें भी तेरे गुमानों का ही अपराध है।
ऐ कू:ए-दो-सद-बार हज़ार अज़ सर-ए-मा'ना
गश्तस्त कज़ ईशाँ ब-जुज़ अंगुश्त निशानस्त
इस हृदय में लाखों बार उसके रहस्य प्रकट हुए है, परन्तु आकुलता की अग्नि से हृदय ऐसा जल गया है कि अब आगे बढ़ने का साहस भी नहीं होता है।
आँ कस कि रिदाए ज़े-रिया बर कतिफ़ उफ़्तद
आँ नीस्त रिदा अज़ सिफ़त-ए-तय-ए-लिसानस्त
हमारी ज़री की यह चादर जिसके कन्धों पर डाल दी जाती है, उसका मानो मुँह बन्द कर दिया जाता है। यह चादर नहीं है। इसमें दूसरे का मुँह बन्द करने का गुण है। (इसका आशय यही है कि हमारे दर्जे को पहुँच कर मनुष्य की दशा ऐसी हो जाती है कि वह रहस्य खोल नहीं सकता।)
गोयन्द निकोयस्त दरीं पर्दः दिल-ए-मा
मी-दाँ ब-हक़ीक़त कि ज़े-इक़बाल-ए-एहसानस्त
लोग कहते हैं कि इस पर्दे के भीतर हमारा दिल बड़े आनन्द में है। यदि ऐसा है तो इसे भी उसकी दया का चिह्न समझना चाहिये।
नज़्म-ए-गोहर-ए-मा-नी दर दीदः-ए-दा'वा
चूँ मर्दुमक-ए-दीद: दरीं मुक़्ला निहान-अस्त
ऊपरी दृष्टि से यदि उसके रहस्य को देखा जाए तो आँख भुलावे में अवश्य आ जाएगी।
दर राह-ए-फ़ना बायद जान-हा-ए-अ'ज़ीज़ाँ
कीं शेर-ए-'सनाई' सबब-ए-क़ुव्वत-ए-जानस्त
प्रिय प्राण! अभी तक तुम मृत्यु के समक्ष नहीं पड़े हो। यदि ऐसा अवसर आता तो तुम भी समझ जाते कि सनाई की यह कविता तुम्हें बल प्रदान करने वाली है।
- पुस्तक : दीवान-ए-सनाई (पृष्ठ 372)
- रचनाकार : हकीम सनाई
- प्रकाशन : मर्कज़-ए-पख़्श:मोअस्सःमोअस्सः-ए-इंतिशारात-ए-निगाह, ईरान (2002)
- संस्करण : First
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.