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साक़ी-ए-फ़र्ख़ुन्द:-रू ख़ेज़- व ब-देह जाम रा

अहमद शाहजहाँपुरी

साक़ी-ए-फ़र्ख़ुन्द:-रू ख़ेज़- व ब-देह जाम रा

अहमद शाहजहाँपुरी

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    साक़ी-ए-फ़र्ख़ुन्द:-रू ख़ेज़- ब-देह जाम रा

    वज़ मय-ए-ख़ुद मस्त कुन ईं दिल-ए-नाकाम रा

    मुबारक साक़ी, उठो और जाम को आगे बढ़ाओ और इस शराब से दिल-ए-नाशाद को मदहोश और सरशार करो।

    दर रह-ए-इश्क़त अगर ख़ल्क़ मलामत कुनंद

    लेक चे परवा-ए-नंग चूँ मन-ए-बद-नाम रा

    तुम्हारे इश्क़ की राह में अगर दुनिया अपमान करती है तो करती रहे मगर मुझे बदनाम के लिए कैसी शर्म और ज़िल्लत।

    क़िबला-ए-मन रु-ए-तू का'ब:-ए-मन कु-ए-तुस्त

    बस्त:-अम अज़ मुद्दते बह्र-ए-तू एहराम रा

    तुम्हारा चेहरा मेरा क़िब्ला (वह लक्ष्य, जिसकी ओर चित्त आकर्षित होता है) और तुम्हारा कूचा मेरा काबा (पवित्र तीर्थस्थल) है, कि मैंने अरसे से तुम्हारे लिए इहराम (एक विशेष पोशाक) बांध रखा है।

    अज़ आतिश-ए-हुस्न-ए-रूख़श सोख़त:-अम सबा

    कुन ख़बर अज़ हाल-ए-मन सर्व-ओ-गुल-अन्दाम रा

    सबा, उसके हसीन चेहरे की तपिश से मैं जल चुका हूँ, इस सर्व क़द (सीधे और सुन्दर शरीर वाला) महबूब को मेरे हाल बता दे।

    'अहमद' अगर सनम लाएक़-ए-इनआ'म नीस्त

    अज़ करम-ए-आ'म-ए-ख़्वेश ख़ास कुन ईं आम रा

    महबूब, अगर अहमद किसी इनाम के काबिल नहीं तो, तू अपने करम ख़ास से इस आम को ख़ास कर दे।

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