प्रीत लगा मन छीन के मोहन छाए रहियो केकरी नगरी
प्रीत लगा मन छीन के मोहन छाए रहियो केकरी नगरी
कौन ख़ता तक़्सीर भई पिया त्याग दइयो हमरी नगरी
न आठ पहर मोहें पड़ी चैन हूँ रोवत कल्पत दिन और रैन
नहीं नीक लगो मोहें घर आँगन पिया सूनी पड़ी हमरी नगरी
पिया तोंहरे कारन जोग लिया सब लोग कुटुम हम त्याग दिया
तोरे 'इश्क़ की दारू पिया पिया तोहें ढूँढ रही नगरी नगरी
नहीं भूलत हूँ तुम्हें श्याम सुंदर सुध लाग रही तोरी आठ पहर
पिया जाए बसो अब कौन नगर नहीं आवत हो हमरी नगरी
करो मु'आफ़ पिया तक़्सीर मोरी दिखा दो दर्शन अब आन ज़री
तोरे देखन को तरसे है जिया अब आन बसा उजड़ी नगरी
जेहकी बिना पूरख की नार खड़ी कहो जाए सखी केकरी डहरी
जंगल परबत ढूँढ फिरी नहीं पायो पिया तोहरी नगरी
अपने को खो पिया खोजत हूँ कहूँ खोज तोरा नहीं पावत हूँ
तन मन खोज जरावत हूँ पिया खोज फिरि नगरी नगरी
एक साईं से जब मोरे नेह न लगे वो दिखलाए दियो सूरत तुमरी
कहा खोल नैन तो देख ज़री पिया 'अब्र' बसे तोहरी नगरी
कर जोर के 'अब्र' ये 'अर्ज़ करत नहीं छाँड़ूँ पिया तोहे जीयत मरत
बिन तोरे नगर मोरी सूनी लगत पिया आन बसो हमरी नगरी
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