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Sufinama

आवो हो रांम सनेहिडा, दरशण दीजै मोहि - रागमारू

महाराज अमरपुरुष जी

आवो हो रांम सनेहिडा, दरशण दीजै मोहि - रागमारू

महाराज अमरपुरुष जी

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    आवो हो रांम सनेहिडा, दरशण दीजै मोहि।।

    तुम बिन जिवडे जक नहीं, निसदिन निरखूं तोहि।।

    विरह विथा सब मेट सनेही, पकडो साहिब वांही।।

    यो औसर फिरि तांहि गुसांई, दरसन दीजै मांही।।

    तुम रोम रोम में व्यापक स्वामी, हमकूं नैनन दीसै।।

    अबला तो दरसन नहिं पावे, कहा रहया कर रीसै।।

    तुम अन्तर जामी मनकी जांणो, वेगि विलंबन कीजै।।

    यो सांसो हरि दूर निवारो, अपणी कर हरिलीजै।।

    अबकै ओगण दूर निवारो, समरथ साहिब मेरा।।

    सरण गहयां की लाज दयानिधि, सेवा जन है तेरा।।

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