राग केदार - प्रथमि दूरि करि प्रभु भ्रम भेदु मेरा
प्रथमि दूरि करि प्रभु भ्रम भेदु मेरा
कृपा निधि और कलि मांझ कोउं नहीं श्रुग पाताल सुंनि सकल हेरा
कृपा निधि और कलि मांझ कोउं नहीं श्रुग पाताल सुंनि सकल हेरा
भुलि भैं बन परयौ धरम धीरज हरयौ सोग संताप सुख दुख घेरा
अब कै जो बचौं आंन नहीं नर जचौं जनम ज्यौं जनम निज दास तेरा
जठुर अग्नि जीयौ बूँद जल की कीयौ लीयौ निज नांव यहु प्रगट चेरा
कर जोरि बीनती करौं सीस चरननि धरौं कृपा करि देहु सतसंग डेरा
घर तजि बन बस्यौ स्यंध संसैं ग्रस्यौ काएर कूर बहु कुटिल कांमीं
पंच परपंच पचीस पर बल पिसन तुम सरनागति सुनहु स्वांमी
ज्यौं जनम तैं डरौं त्रिबिधि तापहि हरौं तन तौ विषै बिकार जाई
गगन ह्वै मगन अंम्रित पीयौ अहि निसा 'बाजीद' कौ देहु बुधिबल गुसांई
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