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दोहा
दधि-मन देत तरंग नित रंग रंग बिस्तार
दधि-मन देत तरंग नित रंग रंग बिस्तारकोउ तरंग मोती सहित काहु संग सेवार
बरकतुल्लाह पेमी
दोहा
लालन मैन तुरंग चढ़ि चलिबो पावक माँहिं
लालन मैन तुरंग चढ़ि चलिबो पावक माँहिंप्रेम-पंथ ऐसो कठिन सब कोउ निबहत नाहिं
रहीम
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कवित्त
खुद एक भुम्मि आहि बासन अनेक ताहि
फेन बुदबुद अरू लहरि तरंग बहुएक जल जानि लीजै मीठा कहूँ खार है
भीखा साहेब
पद
संतो संतोष संग अमंग कर लो अंत असंग
संतो संतोष संग अमंग कर लो अंत असंगअमूरत आतम अनुभव अगम रम्यो अंरग तरंग
अनंत महाराज
कृष्ण भक्ति संत काव्य
जय श्री जमुने कल मल हारिनिकरु करुना प्रीतम की प्यारी भँवर तरंग मनोहर धारिनि
जुगल प्रिया
दकनी सूफ़ी काव्य
एक मात्र स्वामी
आपन देउ देहुरा आपन आप लगावै पूजाजलते तरंग तरंगते है जलु कहन सुनन कउ दूजा
नामदेव
ख़ालिक़ बारी
ख़ालिक़-बारी
शबचरा रख़्श-ओ-तगावर ख़ंग तौसन है तुरुंगबबर ज़ैग़म शेर नाहर यूज़ चीता है पिलंग
अमीर ख़ुसरौ
राग आधारित पद
भैरवी चौताल- रैन गवाय आये ही लालन
रैन गवाय आये ही लालनकहां जागे सारी रात बात कहो प्यारे।
तान तरंग
राग आधारित पद
धनात्री- तिताला- सावड़ा होरी खेलन नहि जानदा
सावड़ा होरी खेलन नहि जानदालंगर लंगर लंगराई करदा साड़ा मन परचावदा
तान तरंग
कुंडलिया
खोजत खोजत मरि गये घर ही लागा रंग
अब चित चलै न इत उत आपु में आपु समानाउठती लहर तरंग हृदय में सीतल लागे