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सूफ़ी कहावत
टिकटिक’ समझे ‘आआ’ समझे, कहे सुने से रहे खड़ा
टिकटिक’ समझे ‘आआ’ समझे, कहे सुने से रहे खड़ाकहें कबीर सुनो भाई साधो, अस मानुस के बैल भला
वाचिक परंपरा
शबद
घट मांहि निरंजन है सजन तुम ख्याल करौ
मानस जनम अमोलक है गुरु-चरण लाग तरौभवसागर भारी है नाम की नाव चढौ
ईष्वरदास
अरिल्ल
ग़ाफ़िल रहें 'बाजीद' कहो क्यूँ बनत है
ग़ाफ़िल रहें 'बाजीद' कहो क्यूँ बनत हैया मानस का साँस जुरा नित गिनत है
वाजिद जी दादूपंथी
साखी
बिरह का अंग - कागा करँक ढँढोलिया मुट्ठी इक लिया हाड़
कागा करँक ढँढोलिया मुट्ठी इक लिया हाड़जा पिंजर बिरहा बसै माँस कहाँ तें काढ़
कबीर
दोहा
रहिमन पर उपकार के करत न यारी बीच
रहिमन पर उपकार के करत न यारी बीचमाँस दियो शिवि भूप ने दीन्हों हाड़ दधीच
रहीम
दोहा
पेम कहानी कहत हूँ सुनो सखी तुम आए
तन-मन मूँ घल-बल पड़ी चुभी बिरह की फाँसहाड़ मांस दोऊ गले धाय चले है साँस