पेम कहानी कहत हूँ सुनो सखी तुम आए
रोचक तथ्य
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पैहम कहानी कहत हूँ सुनो सखी तुम आए
पीह ढूँढ़न कू हूँ गई आई आप गँवाए
पेम कहानी बिस भरी मत सुनियो कोऊ आए
बातन-बातन बिस झरे देखत ही घर जाए
पेम गली इत साँकरी पीह बिन कुछ न समाए
तन-मन छोड़ जब आए तो पीह पाया जाए
पेमनगर मूँ आए के सुध-बुध रहूँ सूँ कून
सुध-बुध यूँ घुल जात है जूँ पानी मैं बून
पेम-नगर में आए के जिवरा निकसा जाए
अरी सखी कुछ पीह की बात कहो टुक आए
पेम कहानी कठिन है कहे कूँ उठ आए
बात कही जीव लेत है मुख पकड़त ही धाए
मू सिर दुख मू सूँ पर यू जू मैं नाँह तू नाँह
साईं मोह उठाए ले जो मोह नाहीं नाँह
भला हुआ हर बीसरी सिरकी गई बलाए
जैसी थी तैसी भई अब कुछ कही न जाए
जो दुखरा मोह सिर पर यूसो काहू की नाँह
कभू पिलावे पेम रस कभू कि बिस छुर माँह
ٖइकथ कथा है पेम की कहे बनत कुछ नाँह
जातन लागे नीहरा सू बूझी मन माँह
चातुर चाहन राग गुन मूरख अत तर साँह
भोगी माँगे चोपड़ी रूखी रूखा खाँह
पाती आइ पीह की छाती उमगी जाए
माला टूटी अंग मूँ चोली तन न समाए
आग लगो वा देस रे बीज परोथि ठावँ
जहाँ न चर्चा नेह का लेह न पीह का नाऊँ
लाज भाज मू सूँ गई जा दिन लागो नेह
बवरी हूँ दौरी फिरूँ सर मू डारीं केह
तन-मन मूँ घल-बल पड़ी चुभी बिरह की फाँस
हाड़ मांस दोऊ गले धाय चले है साँस
ऐ मन खले बावरे बूँ पूछत हूँ तूह
किन बिरहन एतो कियोखि किन खोवयो मोह
ऐ बै-रागी जीवरे कहा लगौ तोहे आए
रेन-दिना बेकल रही अपना मास तू खाए
नाहर पीह कू नीहरा मन मूँ बैठा आए
बाहर भीतर पियो बिन जो पावे सू खाए
जोर करत है नीहरा सखी कहो कित जाऊँ
नाँव न जानूँ गाँव का जहाँ सजन कू ठावँ
ना जानूँ ये जिवरा का सून लाग्यो जाए
मोहन टुक आवत नहीं रही हूँ हाहा खाए
सुन री नेही बावरी काची-पाकी छोड़
वा कौन कैसे पाए जासूँ चले न जोर
ले क्यूँ जाऊँ मटकिया सारी मारक रो कू आए
तनिक लाज नहीं बाबनवा री गउ रस लेत छिनाए
ले क्यूँ जाऊँ गगरिया भारी मोहन पकरत बाँह
दही दूध सब लिया के खेंचत है बन माँह
छतियाँ आएँ उमंग के अंगिया छोटी जाए
मन मेरो ऐसिन कहे जो मोहन निकसे आए
सूती थी सुख-चैन सूँ घर मूँ पाँव पसार
मोहन मोह जगाए के फेरत दूरा द्वार
जियूँ सूरज मुख जात है घर-बाहर की छाँह
त्यूँ मेरी सुद्ध जात है ये मुख देखी माँह
जोर करत ही नीहरा बोझ परत कुछ नाँह
ना जानूँ मैं ई सखी कित धरत मन माँह
बिरह बीच मोह सर पर यू तन-मन जल भयो खेह
हूँ बवरी क्या जानती याको कहत हैं नेह
साँस लेईं नहीं देत है छिन-छिन बिरहा आए
अब उन बिन हूँ ना रिहयूँ जिवरा निकसा जाए
सुध-बुध ता दिन सूँ गई जा दिन देखी नाँह
चोली दरकी अंग मूँ जब गह पकड़ी बाँह
सुध-बुध तन-मन मूँ गई नैनन सूँ गई लाज
हाथ धोए पाछे परियो माई मोहन आज
बथेरीं अलकीं गूँध के नैनन काजल देह
तन-मन दूध बहार के साजन सूँ सुख लेह
माँग सँवारी नेह सून कंघी कर गूँधे बाल
गहना पहरी अंग भर कपड़े पहने लाल
पायल बाजें बात मूँ और घुँगरू झंकाँह
लिए दुई दूख हम सर परी प्यू बिन कैसी जान्ह
गउ चरावत फिरत है नित उठ जमुना तीर
निस दुख छन-छन देत है चंचल निपट अहीर
रेन-दिना देखत रहीं तो-ऊ दींथ न चैन
नैन टुक न अघात हैं जूँ भूकी बे-चैन
बिरहाए सून ऐ सखी निपट कठिन बनी आए
देखे तन-मन ना भरे जिन देखिए जियो जाए
लाखन अँखियाँ जिसे जू देखूँ सब से पी
देखत-देखत मर मिटूँ तोऊ भरे ना जी
रेन-दिना घेरे रहीं इक छन देत न चैन
या मोहन की हाथ सूँ परो मोह जी दैन
नैन आए नाथ में माथे तेवरी लाए
मू कू कुछ सुद्ध नाँह चूक कहा परी आए
धर-धर हियरा करत है सर-सर जिवरा जाए
धर-धर सूँ दुख सर परी बिरहन की सर आए
धर-धर हियरा करत है धीर नहीं कोऊ देत
नीह सजन का पीठ मन मार मार जीह लेत
पेम लाज सब उठ गई सुनत बिरह के बैन
पीतम की दरसन बिना थर-थर करीं दोऊ नैन
घर-बाहर भर नीहरा मू को रहो न ठावँ
तन-मन में मोहन बसे रह गयो मेरा नाँव
आज न देखा लाल कू हाल हमारा और
चुभी बिरह की भाल दुख के दौरा दौर
ऐ री सखी बाँगर मूँ मन मेरो लियो मोह
मोहन है या डगर मूँ नहीं कहत रहीं तोह
मन मेरो लियो मोह सीं फिर घूरत है मोह
अरे अरे मोहन बावरे कछु लाज है तोह
पीत की रीत कोऊ रीत है मत मर्दऊ लो नाँव
भूले मत जाव रे काँटे हैं तह ठावँ
जूली निकसत रंग सूँ अंगियाँ छूई जाए
मन बैरा वा से कह मोहन निकसै आए
गँवाए पैहम कहानी बस बहरे मत सुनो कोई आए
बातों बातों बस जबड़े देखत है गौहर जाए
पैहम कली रात साँगरी पियौं कुछ न समाए
तन-मन छरड़ जो उस के तोई आया जाए
- पुस्तक : नजात-ए-क़ासिम (पृष्ठ 192)
- रचनाकार : शाह क़ासिम दानापूरी
- प्रकाशन : अशरफ़ुल अख़बार, अगरा (1857)
- संस्करण : First
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