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अष्टपदी
अनहद शब्द अपार दूर सूँ दूर है
पाप पुन्य छुटि जायें दोऊ फल ना रहैंहोय परम कल्यान जो तिरगुन ना गहैं
चरनदास जी
पद
गरज रहै अंतर राम अलेख
गरज रहै अंतर राम अलेख,गरज रहै अंतर राम अलेख,पांच पचीस तीन गुण भागा, अन्तर रही न रेख।।
महात्मा कल्याणदास जी
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पद
सखी हो गुरु के शरणै रहिये
सखी हो गुरु के शरणै रहिये,गुरु गोविंद हाथ जब पकड़ै, बहु मारग नहिं बहीये।।
महात्मा कल्याणदास जी
पद
राम रस बंकारे, कोई पीवै साधु सुजाण।।
राम रस बंकारे, कोई पीवै साधु सुजाण।।राम रस बंकारे, कोई पीवै साधु सुजाण।।
महात्मा कल्याणदास जी
पद
संतो सतगुरु कहै विचारा, सुमिरो सिरजन हारा।।
संतो सतगुरु कहै विचारा, सुमिरो सिरजन हारा।।संतो सतगुरु कहै विचारा, सुमिरो सिरजन हारा।।
महात्मा कल्याणदास जी
पद
राम रस पीवै रे, पीञै जीञै सोई।।
राम रस पीवै रे, पीञै जीञै सोई।।राम रस पीवै रे, पीञै जीञै सोई।।
महात्मा कल्याणदास जी
पद
हरि की कथा सुनि रे प्राणी, साध देय उपदेश।।
हरि की कथा सुनि रे प्राणी, साध देय उपदेश।।साध बिना पावै नहीं, तेरा ब्रह्म कहींजै देश।।
महात्मा कल्याणदास जी
पद
कबीर नाम दे पींपा रैदास, भवसागर की काटी पासा
कबीर नाम दे पींपा रैदासा, भवसागर की काटी पासा।।गोरख भरथरी गोपीचन्द, जन कल्याणदास मिल करे आनंद।।
महात्मा कल्याणदास जी
पद
राम रस मीठा रे, अमली बिन पीया न जाय
राम रस मीठा रे, अमली बिन पीया न जाय।।राम रस मीठा रे, अमली बिन पीया न जाय।।
महात्मा कल्याणदास जी
पद
जिन पाया साहिब सांई, वै घटि बधि बोलै नांही।।
जिन पाया साहिब सांई, वै घटि बधि बोलै नांही।।जिन पाया साहिब सांई, वै घटि बधि बोलै नांही।।
महात्मा कल्याणदास जी
पद
चित लागो रमता राम सूँ, मन बिरच्यो विषया वाम सूँ।।
चित लागो रमता राम सूँ, मन बिरच्यो विषया वाम सूँ।।चित लागो रमता राम सूँ, मन बिरच्यो विषया वाम सूँ।।
महात्मा कल्याणदास जी
पद
हम घर आये हरि का जना, राम रतन धन पायो मना।।
हम घर आये हरि का जना, राम रतन धन पायो मना।।हम घर आये हरि का जना, राम रतन धन पायो मना।।