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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
शाह नसीर
ना'त-ओ-मनक़बत
’अदम से लाई है हस्ती में आरज़ू-ए-रसूलकहाँ-कहाँ लिए फिरती है जुस्तजू-ए-रसूल
बेदम शाह वारसी
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शे'र
कहाँ चैन ख़्वाब-ए-अदम में था न था ज़ुल्फ़-ए-यार का ख़यालसो जगा के शोर ने मुझे इस बला में फँसा दिया
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
ग़ज़ल
शहीद-ए-इ’श्क़-ए-मौला-ए-क़तील-ए-हुब्ब-ए-रहमानेजनाब-ए-ख़्वाजः क़ुतुबुद्दीं इमाम-ए-दीन-ओ-ईमाने
वाहिद बख़्श स्याल
सूफ़ी कहावत
रू-ए ज़ेबा मरहम-ए-दिलहा-ए-ख़स्ता अस्त-ओ-कलीद-ए-दरहा-ए-बस्ता
एक ख़ूबसूरत चेहरा दुखी दिलों के लिए मरहम की तरह होता है, और बंद दरवाजों के लिए कुंजी
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
गुल-ए-बुस्तान-ए-मा'शूक़ी मह-ए-ताबान-ए-महबूबीनिज़ामुद्दीन सुल्तान-उल-मशाइख़ जान-ए-महबूबी