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ना'त-ओ-मनक़बत
है दर्द-ओ-ग़म से दिल मलूल रूही फ़िदा या रसूलहर दम है लुत्फ़-ए-हक़ नुज़ूल रूही फ़िदा या रसूल
अज्ञात
ग़ज़ल
ग़म-ए-जिगर-शिकन-ओ-दर्द-ए-जाँ-सिताँ देखातुम्हारे इ'श्क़ में क्या क्या न मेहरबाँ देखा
मीर मोहम्मद बेदार
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ना'त-ओ-मनक़बत
दिल में दर्द-ए-शह-ए-कौनैन की दौलत है बड़ीहूँ तो नादार मैं लेकिन मिरी क़ीमत है बड़ी
मुनव्वर बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
यही दर्द-ए-ज़िंदगी है इसी दर्द में मज़ा हैतेरा नाम जब लिया मेरा दिल तड़प उठा है
शिवा बरेलवी
ग़ज़ल
कैफ़-ओ-कम को देख उसे बे-कैफ़-ओ-कम कहने लगेजब हुदूस अपना खुला राज़-ए-क़िदम कहने लगे
ख़्वाजा मीर दर्द
ना'त-ओ-मनक़बत
आज ज़ोरों पे है ये दर्द-ए-जिगर क्या बाइ'सली न सरकार-ए-दो-’आलम ने ख़बर क्या बाइ'स