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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
भरन फिर अब्र-ए-रहमत लुत्फ़ की बरसाने लगते हैंजो हम मुश्किल में नाम-ए-ग़ौस को दोहराने लगते हैं
अस'अद रब्बानी
ना'त-ओ-मनक़बत
जब देखो दर-ए-मुस्तफ़ा पर अब्र रहमत के छाए हुए हैंदस्त-बस्ता खड़े हैं मलाइक अंबिया सर झुकाए हुए हैं
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
फ़ारसी कलाम
दिल अंदर नूर-ए-ऊ बस्तम नमी दानम कुजा रफ़्तमकुजा रफ़्तम कुजा रफ़्तम नमी दानम कुजा रफ़्तम
अब्र मिर्ज़ापुरी
फ़ारसी कलाम
नूर-ए-ख़ुदा ख़ुदा मनम मन न मनम न मन मनमजल्वः-ए-मुस्तफ़ा मनम मन न मनम न मन मनम
अब्र मिर्ज़ापुरी
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
अब्र-ए-ख़ुश अस्त व वक़्त-ए-ख़ुश अस्त व हवा-ए-ख़ुशसाक़ी-ए-मस्त दादः ब-मस्ताँ सला-ए-ख़ुश
अमीर ख़ुसरौ
ग़ज़ल
रो रो के ज़ार-ज़ार ये कहता है जान-ए-अब्रहो चश्म-ए-अश्क-बार पे ये साएबान-ए-अब्र