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ना'त-ओ-मनक़बत
'अली का नाम हर अहल-ए-वफ़ा की शान-ओ-शौकत है'अली मुर्तज़ा फ़ख़्र-ए-उमम राह-ए-हिदायत है
ख़्वाजा शायान हसन
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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
क्यूँ-कर हमें न अपने मुक़द्दर पे नाज़ होअहल-ए-वफ़ा के वास्ते रहमत हुसैन हैं
ख़्वाजा शायान हसन
ग़ज़ल
जो सर न झुके दर पर वो अहल-ए-वफ़ा कैसाजो हिज्र में जलता हो वो शो’ला-ए-फ़र्दा मस्त
आकिफ़ हुसैन शाहवली
ग़ज़ल
मेरे अर्ज़-ए-ग़म पे वो कहना किसी का हाए हाएशिकवा-ए-ग़म शेवा-ए-अहल-ए-वफ़ा होता नहीं
जिगर मुरादाबादी
शे'र
मेरे अ'र्ज़-ए-ग़म पे वो कहना किसी का हाए हाएशिकवा-ए-ग़म शेवा-ए-अहल-ए-वफ़ा होता नहीं