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दकनी सूफ़ी काव्य
तोहफ़तुल अहबाब और तोहफ़तुल निसा
होता था अगर नबी मुसाफ़िरकरता था बिदा उसकू आखिर
मोहम्मद बाक़र आगाह
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दकनी सूफ़ी काव्य
दीवाने सुलतान
कर नियत अव्वल मुजकूँ क्या हश्त तूँ आखिरपाया हूँ मगर पॉच जनम छूटई जनम ते
शाह सुल्तान सानी
ग़ज़ल
काम आख़िर जज़्बः-ए-बे-इख़्तियार आ ही गयादिल कुछ इस सूरत से तड़पा उन को प्यार आ ही गया
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
काम आख़िर जज़्बा-ए-बे-इख़्तियार आ ही गयादिल कुछ इस सूरत से तड़पा उन को प्यार आ ही गया