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ग़ज़ल
अंदेशों की रीत पे हम ने नक़्श यक़ीं के उभरे देखेकिस के भरोसे कर बैठे हम ऐसी मुश्किल आसाँ-आसाँ
फ़ातमा हुसैनी मख़फ़ी
कलाम
सई’द शहीदी
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- दूसरी दास्तान
।। 4 ।।अमीर दिन भर ग़ुस्से में भरे बैठे रहे। दूसरे दिन सवेरे भी ख़ौफ़-ज़दा दरबारियों
लियोनिद सोलोवयेव
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी
काक एक क़िस्म की छोटी सी गोल रोटी बिस्कुट की तरह होती है जिसके किनारे उभरे