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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
कलाम
जुनूँ वज्ह-ए-शिकस्त-ए-रंग-ए-महफ़िल होता जाता हैज़माना अपने मुस्तक़बिल में दाख़िल होता जाता है
सीमाब अकबराबादी
शे'र
गुज़र जा मंज़िल-ए-एहसास की हद से भी ऐ 'अफ़्क़र'कमाल-ए-बे-खु़दी है बे-नियाज़-ए-होश हो जाना
अफ़क़र मोहानी
शे'र
गुज़र जा मंज़िल-ए-एहसास की हद से भी ऐ 'अफ़्क़र'कमाल-ए-बे-खु़दी है बे-नियाज़-ए-होश हो जाना
अफ़क़र मोहानी
ग़ज़ल
शिकस्त-ए-ख़ातिर-ए-'आशिक़ में है रँग उन की महफ़िल काउसी तस्वीर पर है आईना टूटे हुए दिल का
अफ़सर सिद्दीक़ी अमरोहवी
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ग़ज़ल
है एहसास-ए-ख़ुदी सब को कोई मोमिन हो या काफ़िरचला सब पर तिरा जादू पढ़ा सब ने तिरा मंतर
मयकश अकबराबादी
ग़ज़ल
इक बसीत-ए-एहसास इक शौक़-ए-नुमायाँ चाहिएइ'श्क़ की नब्ज़ों में रक़्स मौज-ए-तूफ़ाँ चाहिए
अख़तर अ’लीगढ़ी
ग़ज़ल
हाँ मोहतसिब अगर ख़ुम-ओ-मीना शिकस्त होसाथ-ही तुम्हारे सर का भी कासा शिकस्त हो
सुलेमान शिकोह गार्डनर
शे'र
जब चाहने वाले ख़त्म हुए उस वक़्त उन्हें एहसास हुआअब याद में उन की रोते हैं हँस हँस के रुलाना भूल गए
कामिल शत्तारी
शे'र
दफ़्न हूँ एहसास की सदियों पुरानी क़ब्र मेंज़िंदगी इक ज़ख़्म है और ज़ख़्म भी ताज़ा नहीं