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Sufinama

शिकस्त-ए-ख़ातिर-ए-'आशिक़ में है रँग उन की महफ़िल का

अफ़सर सिद्दीक़ी अमरोहवी

शिकस्त-ए-ख़ातिर-ए-'आशिक़ में है रँग उन की महफ़िल का

अफ़सर सिद्दीक़ी अमरोहवी

MORE BYअफ़सर सिद्दीक़ी अमरोहवी

    शिकस्त-ए-ख़ातिर-ए-'आशिक़ में है रँग उन की महफ़िल का

    उसी तस्वीर पर है आईना टूटे हुए दिल का

    तुम्हें आँसू तो समझूँ मैं कि मंज़िल 'इश्क़ की आई

    चला करता है ख़ुश्की से पता दरिया के साहिल का

    निगाहें तो बहुत कुछ कर चुकीं मिलने की तदबीरें

    मगर अब काम बाक़ी रह गया है जज़्बा-ए-दिल का

    हर इक में कुछ कुछ निकली बुराई जब नज़र डाली

    हसीनों में हाथ आया कोई उन के मुक़ाबिल का

    थी ऐसी तो हैबत-नाक सूरत दाद-ख्वाहों की

    ये आख़िर क्यूँ ज़रा सा मुँह निकल आया है क़ातिल का

    ख़ुदा ही जानता है देखने वालों ने क्या देखा

    गया जो उन की महफ़िल में हुआ वो उन की महफ़िल का

    सुबूत-ए-बे-गुनाही और क्या दरकार है 'अफ़सर'

    बुतों में दामन चाहिए शमशीर-ए-क़ातिल का

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