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शे'र
फ़स्ल-ए-बहार में तो क़ैद-ए-क़फ़स में गुज़रीछूटे जो अब क़फ़स से तो मौसम-ए-ख़िज़ाँ है
हैरत शाह वारसी
ग़ज़ल
बस-कि हूँ दिल-तंग ख़ुश आता है सहरा-ए-क़फ़सबुलबुल-ए-बे-बाल-ओ-पर रखती है सौदा-ए-क़फ़स
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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शे'र
क़फ़स में भी वही ख़्वाब-ए-परेशाँ देखता हूँ मैंकि जैसे बिजलियों की रौ फ़लक से आशियाँ तक है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
क़फ़स में भी वही ख़्वाब-ए-परेशाँ देखता हूँ मैंकि जैसे बिजलियों की रौ फ़लक से आशियाँ तक है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
क़फ़स में बैठ कर बर्क़-ए-तपाँ को याद करते हैंबहारें लुट चुकी हैं अब ख़िज़ाँ को याद करते हैं
रऊफ़ काकोरवी
कलाम
जले आशियाने जो दिल की तरह चमन से शोर-ए-फ़ुग़ाँ उठाये कहाँ लगी ये कहाँ लगी कि क़फ़स से आज धुआँ उठा
रियाज़ ख़ैराबादी
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ फ़ख़्रुद्दीन इ’राक़ी रहमतुल्लाह अ’लैह
शाहबाज़ान दर क़फ़स माँदःपेश-बीनान बाज़ पस माँदः
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
Jamaali – The second Khusrau of Delhi (जमाली – दिल्ली का दूसरा ख़ुसरो)
ज़े-हिन्दुस्ताँ अगर्चे दूर बूदमचूँ तूती दर क़फ़स महजूर बूदम
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बू-अ’ली शाह क़लंदर
दस्त रा कोताह साज़द अज़ हवसब-शिकनद बा-चंग-ए-हिम्मत ईं क़फ़स
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
हर हर क़दम पे ठोकरें खाना पड़ा मुझेजब से मिली है क़ैद-ए-क़फ़स की सज़ा मुझे