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दर सिर्र-ए-आँ-कि मन अरादा अंय-यज्लिसा म’अल्लाहि फ़ल-यज्लिस म’आ अहल-ए-तसव्वुफ़

रूमी

दर सिर्र-ए-आँ-कि मन अरादा अंय-यज्लिसा म’अल्लाहि फ़ल-यज्लिस म’आ अहल-ए-तसव्वुफ़

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    रोचक तथ्य

    اردو ترجمہ: سجاد حسین

    दर सिर्र-ए-आँ-कि मन अरादा अंय-यज्लिसा म'अल्लाहि फ़ल-यज्लिस म'आ अहल-ए-तसव्वुफ़

    हदीस, जो ''अल्लाह के साथ बैठने का क़सद करे वो अहल-ए-तसव़्वुफ के साथ बैठे'' का बयान

    आँ रसूल अज़ ख़ुद ब-शुद ज़ीं यक-दो जाम

    ने रिसालत याद माँदश नेह पयाम

    वो एलची इन एक दो जाम से बेख़ुद हो गया

    उस को सिफ़ारत याद रही पैग़ाम

    वालः अंदर क़ुदरतुल्लाह शुद

    आँ रसूल ईंं-जा रसीद-ओ-शाह शुद

    वो एलची इस जगह पहुँचकर शाह बन गया

    अल्लाह की क़ुदरत का फ़रेफ़्ता हो गया

    सैल चूँ आमद ब-दरिया बहर गश्त

    दानः चूँ आमद ब-मज़्रा' किश्त गश्त

    सैलाब दरिया में पहुँचा, दरिया बन गया

    दाना जब खेत में पहुँचा, खेती बन गया

    चूँ त'अल्लुक़ याफ़्त नाँ बा-जानवर

    नान-ए-मुर्दः ज़िंदः गश्त-ओ-बा-ख़बर

    रोटी का ताल्लुक़ जब (हज़रत)-ए-आदम से हुआ

    मुर्दा रोटी, ज़िंदा और बा-ख़बर हो गई

    मोम-ओ-हैज़ुम चूँ फ़िदा-ए-नार शुद

    ज़ात-ए-ज़ुल्मानी-ए-ऊ अनवार शुद

    मोम और सोख़्ता लकड़ी जब आग पर क़ुर्बान हुई

    उस की तारीक ज़ात अनवार बन गई

    संग-ए-सुर्मः चूँकि शुद दर दीदगाँ

    गश्त बीनाई शुद आँ-जा दीदबाँ

    सुरमा का पत्थर जब आँखों में पहुँचा

    बीनाई का पत्थर और आँख का निगेहबान बन गया

    ख़ुनुक आँ मर्द कज़ ख़ुद-रुस्त: शुद

    दर वुजूद-ए-ज़िंदः-ए-पैवस्तः शुद

    बहुत ही काबिल-ए-मुबारकबाद है वो शख़्स जो ख़ुदी से

    और किसी ज़िंदा के वजूद से वाबस्ता हो गया

    वा-ए-आँ ज़िंदः कि बा-मुर्दः निशस्त

    मुर्दः गश्त-ओ-ज़िंदगी अज़ वै ब-जस्त

    अफ़सोस है उस ज़िंदा पर जो मुर्दे का हमनशीं हुआ

    मुर्दा हो गया और ज़िंदगी उस से निकल भागी

    चूँकि दर क़ुरआन-ए-हक़ ब-गुरेख़्ती

    बा-रवान-ए-अंबिया आमेख़्ती

    जब तू सच्चे क़ुरआन की पनाह में गया

    अंबिया की रूह से घुल मिल गया

    हस्त क़ुरआँ हाल हा-ए-अंबिया

    माहियान-ए-बहर-ए-पाक-ए-किब्रिया

    क़ुरआन में अंबिया के अहवाल हैं

    जो अल्लाह के पाक दरिया की मछलियाँ हैं

    वर ब-ख़्वानी-ओ-नेह क़ुरआँ पज़ीर

    अंबिया-ओ-औलिया रा दीदः-गीर

    अगर तू पढ़ता है और तू क़ुरआन पर अमल करने वाला नहीं है

    अंबिया और औलिया का दीदार समझ

    वर पज़ीराई चु बर ख़्वानी क़िसस

    मुर्ग़-ए-जानत तंग आयद दर क़फ़स

    अगर तू अमल पैरा है, जब क़िस्से पढ़े

    तो तेरी जान का परिंद पिंजरे में तंग हो जाये

    मुर्ग़ कू अंदर क़फ़स ज़िंदानी अस्त

    मी न-जूयद रुस्तन अज़ नादानी अस्त

    जो परिंद पिंजरे में क़ैदी है

    छुटकारा चाहे, तो नादानी है

    रूह-हा-ए-कज़ कफ़स-हा रस्त:अन्द

    अंबिया-ए-रहबर-ए-शाइस्तः-अंद

    जो रूहें पिंजरों से आज़ाद गई हैं

    अंबिया और शाइस्ता मुर्शिद हैं

    अज़ बरूँ आवाज़ शाँ आयद ज़ दीं

    कि रह-ए-रुस्तन तुरा ईनस्त ईं

    बाहर से उनकी आवाज़ इस तरह आती है

    कि तेरे छुटकारे का रास्ता यही है यही है

    मा ब-दीं रस्तेम ज़ीं तंगीं क़फ़स

    जुज़ कि ईं रह नीस्त चारः-ए-ईं क़फ़स

    हम इस तंग पिंजरे से इसी (रास्ता) से छूटे हैं

    इस रास्ता के अलावा इस पिंजरे से (छुटने की ) कोई तदबीर नहीं है

    ख़्वेश रा रंजूर साज़ी ज़ार-ज़ार

    ता तुरा बैरूँ कुनंद अज़ इश्तिहार

    अपने आपको रंजूर और ज़ारो नज़ार बना ले

    ताकि तुझे शौहरत से निकाल लाएँ

    कि इश्तिहार-ए-ख़ल्क़ बंद-ए-मोहकमस्त

    दर रह ईं अज़ बंद-ए-आहन कै कमस्त

    मख़लूक़ में शौहरत, मज़बूत बेड़ी है

    राह में ये लोहे की बेड़ी से कब कम है

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