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पद
मानो विनंती महाराज चलो पतीतन के काज
मानो विनंती महाराज चलो पतीतन के काजनामा कहे बम्मनराज न बाजे इत बातन सो
गोंदा महाराज
कवित्त
नेत्रोपालम्भ - छूट्यौ गृह काज लोक लाज मन मोहिनी को
छूट्यौ गृह काज लोक लाज मन मोहिनी कोभूल्यौ मन मोहन को मुरली बजाइबौ
रसखान
सोरठा
अखरावती - सतगुरु खोजो संत जीव काज जेहि होय जो
सतगुरु खोजो संत जीव काज जेहि होय जोमेटैं भव का अंत आवागवन निवारहीं
कबीर
दोहा
मैं खोटी हूँ तुम खरे खरे तुम्हारे काज
मैं खोटी हूँ तुम खरे खरे तुम्हारे काजखोट खोट सब छाँट दो खरा बना दो आज
मुज़्तर ख़ैराबादी
दोहा
पीतम पत तुम हाथ है लाज करूँ कह काज
पीतम पत तुम हाथ है लाज करूँ कह काजभिक्षा माँगूँ आप से दान दियो महाराज
अमीनुद्दीन वारसी
बैत
कहूँ मैं क्यूँ कि मिरा काम काज अबतर है
कहूँ मैं क्यूँ कि मिरा काम काज अबतर है'अली के 'इश्क़ से सीना मिरा मो'अत्तर है
अम्न इक़बाल
कृष्ण भक्ति सूफ़ी कलाम
कधी मोहतिया मोह न आवे 'औघट' कौने काजकुबरी ऐसी प्रीत करो कि मिलें कृष्ण-महराज
औघट शाह वारसी
कवित्त
कहत पुकार कोइलिया हे ऋतु राज ।
सोना सम्पति काज त्यागि सब काज ।भये उदासी बिरिया बिसरी लाज ।।
रानी रघुवंश कुमारी
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
मनहि दीनता होई।।तेहि काँ काज सिद्ध कै जानौ,
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
मीरां के जोगी या जोगिया का मर्म- शंभुसिंह मनोहर
नमो गज तारण मारण ग्राह।नमो व्रज काज सुधारण वाह।।