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ना'त-ओ-मनक़बत
मेरा का’बा-ए-तमन्ना दर-ए-पाक-ए-मुस्तफ़ाईमेरी ज़िंदगी का हासिल उसी दर की जब्हा-साई
बह्ज़ाद लखनवी
शे'र
ख़ुदा रक्खे अजब कैफ़-ए-बहार-ए-कू-ए-जानाँ हैकि दिल है जल्वः-सामाँ तो नज़र जन्नत-ब-दामाँ है
अफ़क़र मोहानी
ना'त-ओ-मनक़बत
देखी जो फ़ज़ा-ए-कू-ए-नबी जन्नत का ठिकाना भूल गएसरकार का रौज़ा याद रहा दुनिया का फ़साना भूल गए
अ'बिद बरेलवी
ना'त-ओ-मनक़बत
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
ग़ज़ल
जो हम तर्क-ए-’आलाइक़ कर के कू-ए-यार में आएतो ख़ारिस्ताँ से गोया गुलशन-ए-बे-ख़ार में आए
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
शे'र
सजा कर लख़्त-ए-दिल से कश्ती-ए-चश्म-ए-तमन्ना कोचला हूँ बारगाह-ए-इ’श्क़ में ले कर ये नज़्राना