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सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
मन्मथ करै कैद अपनो में, जान जहतिया लावै।। काव्य में इस प्रकार की उक्तियाँ ठीक नहीं होतीं।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
ग़ज़ल
पेच-ब-पेच कमन्द ज़ुलफ़ दे, जे गलि डालें एवेंहर इक गरदन-कश मुलक दा, होसी कैद करायआ
मियां मोहम्मद बख़्श
सूफ़ी कहानी
कोतवाल का एक शराबी को क़ैद-ख़ाने का हुक्म देना और उस का जवाब- दफ़्तर-ए-दोउम
एक रात को कोतवाल गश्त करता हुआ एक जगह पहुंचा, देखा कि दीवार के नीचे एक
रूमी
ग़ज़ल
गुमाँ की क़ैद में था अब यक़ीं की क़ैद में हूँमैं हाँ से छूट गया तो नहीं की क़ैद में हूँ
नसीर सेराजी
शे'र
ख़ुशी से ख़त्म कर ले सख़्तियाँ क़ैद-ए-फ़रंग अपनीकि हम आज़ाद हैं बेगानः-ए-रंज-ए-दिल-आज़ारी
हसरत मोहानी
ना'त-ओ-मनक़बत
क़ैद में भी शौकत-ए-नाम-ओ-नसब ज़ैनब में हैजो है अहल-ए-बैत की पहचान सब ज़ैनब में है
ताहिर ख़ान
पद
ककहरा - गग्गा गगन नहीं आकास भास भया सुन्नि से
निरंकार जम जोति जाल जग डारियाअरे हाँ रे 'तुलसी' ब्रह्मा रचिया बेद कैद करि मारिया