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ग़ज़ल
न समझ में आए लेकिन ये ख़ता नहीं बयाँ कीवो क़फ़स की कैसे होती जो ज़बाँ थी आशियाँ की
रा’ना अ’ज़ीमाबादी
ग़ज़ल
न हो उस की ख़ता-पोशी पे क्यूँ नाज़-ए-गुनहगारीनिशान-ए-शान-ए-रहमत बिन गया दाग़-ए-सियह-कारी
हसरत मोहानी
भजन
कौन ख़ता मो से भई पिया एक बार सनम तू भूला रे
कौन ख़ता मो से भई पिया एक बार सनम तू भूला रेतोंहरे रूठे ख़ल्क़ सब रूठा ख़्वेश कुटुम मुँह मोड़ा रे
अब्र मिर्ज़ापुरी
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह ग़फ़ूरुर्रहमान हम्द काकवी
आदमी हूँ मेरी अस्लिय्यत है अकबर भूल चूकहै ख़ता मेरे लिए मैं हूँ ख़ता के वास्ते
रय्यान अबुलउलाई
ग़ज़ल
मिरे नज़दीक तो ’उज़्र-ए-ख़ता इंकार-ए-रहमत हैख़ता-कारों को अंदाज़-ए-ख़ता अब तक नहीं आया
पीर नसीरुद्दीन नसीर
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
तुम हो आपस में ग़ज़बनाक वो आपस में रहीमतुम ख़ता-कार ओ ख़ता-बीं वो ख़ता-पोश ओ करीम
अल्लामा इक़बाल
दकनी सूफ़ी काव्य
तूतीनामा- चुन उस गोहराँ के समन्द का गम्भीर
न देख्या कधीं कुच उसते ख़ताचल उस पाकदामन तेरे ठार कूँ
मुल्ला ग़व्वासी
दकनी सूफ़ी काव्य
गुलदस्ता मसनवी सनती
यो ख़ता मेरे फन का रूझान भरकिया भिश्क (?) सू खुश यो अफ़सान तर