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ग़ज़ल
हिज्र में पीर-ओ-जवाँ दोनों हैं ख़्वार-ओ-ख़स्ता-तनवस्ल में मा'शूक़ के है ज़िंदगानी का मज़ा
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
कलाम
कहीं बन के वारिस-ए-पंजतन बना आप ‘बेदम’-ए-ख़स्ता-तनकहीं बंदा-ए-बे-दरम बना कहीं ख़ालिक़-ए-दो-जहाँ हुआ
बेदम शाह वारसी
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दोहा
मुख ग्रीषम पावस नयन तन भीतर जड़काल
मुख ग्रीषम पावस नयन तन भीतर जड़कालपिय बिन तिय तीन ऋतु कबहुँ न मिटैं 'जमाल'
जमाल
दोहरा
दम दम जान लबां पर आवे छोड़ि हवेली तन दी
दम दम जान लबां पर आवे छोड़ि हवेली तन दीखली उडीके मत हुन आवे किधरों वा सजन दी
मियां मोहम्मद बख़्श
दोहा
या तन की जूती करूँ काढ़ रँगाऊँ खाल
या तन की जूती करूँ काढ़ रँगाऊँ खालपाथन से लिपटी रहूँ आठूँ पोर 'जमाल'
जमाल
साखी
सतसंग का अंग - मन दीया कहुँ औऱही तन साधुन के संग
मन दीया कहुँ औऱही तन साधुन के संगकहै 'कबीर' कोरी गजी कैसे लागै रंग
कबीर
फ़ारसी कलाम
दिल-ओ-जिगर नज़र-ओ-दीद: जान-ओ-तन हम: ऊस्तहर आंचे हस्त दरीं ख़िरक़:-ए-कोहन हम: ऊस्त
ग़ुलाम इमाम शहीद
सलोक
फ़रीदा मैं तन अउगन एतड़े जेते धरती कक्खु
फ़रीदा मैं तन अउगन एतड़े जेते धरती कक्खुतउं जेहा मैं न लहां मैं जेहियां कई लक्ख
बाबा फ़रीद
दोहा
मन जोगी तन की मढ़ी सेत गूदरी ध्यान
मन जोगी तन कि मढ़ी सेत गूदरि ध्याननैनाँ जल बिरह धोएँ बिच्छा दरसन जान
बरकतुल्लाह पेमी
सलोक
फ़रीदा जितु मनि बिरहा उपजै तित तन कैसा मासु
फ़रीदा जितु मनि बिरहा उपजै तित तन कैसा मासुइतु तनि इह वी बहुत है हांडा चाग अरु मासु