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सूफ़ी कहावत
ख़ाक-ए-वतन अज़ मुल्क-ए-सुलैमाँ ख़ुश्तर
वतन की मिट्टी सुलैमान (नबी) की सलतनत से ज़्यादा बेहतर है
वाचिक परंपरा
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
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गूजरी सूफ़ी काव्य
पिउ है वतन तू है सरा पस आप कूँ छोड़ कर
पिउ है वतन तू है सरा पस आप कूँ छोड़ करहुब्बुलवतन ईमान है पिउ की तरफ़ चले ऐ सखी
पीर सय्यद मोहम्मद अक़दस
नज़्म
वतन के मुहाफ़िज़ का पैग़ाम अपनी माँ के नाम
दूर रह कर तिरी फ़ुर्क़त भी गवारा है मुझेघर से तो जंग का मैदाँ ही प्यारा है मुझे
अज़ीज़ वारसी देहलवी
ग़ज़ल
शहीद-ए-इ’श्क़-ए-मौला-ए-क़तील-ए-हुब्ब-ए-रहमानेजनाब-ए-ख़्वाजः क़ुतुबुद्दीं इमाम-ए-दीन-ओ-ईमाने
वाहिद बख़्श स्याल
सूफ़ी कहावत
रू-ए ज़ेबा मरहम-ए-दिलहा-ए-ख़स्ता अस्त-ओ-कलीद-ए-दरहा-ए-बस्ता
एक ख़ूबसूरत चेहरा दुखी दिलों के लिए मरहम की तरह होता है, और बंद दरवाजों के लिए कुंजी
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
गुल-ए-बुस्तान-ए-मा'शूक़ी मह-ए-ताबान-ए-महबूबीनिज़ामुद्दीन सुल्तान-उल-मशाइख़ जान-ए-महबूबी
हसरत अजमेरी
सूफ़ी कहानी
हज़रत-ए-उ’मर के पास सफ़ीर-ए-क़ैसर का आना - दफ़्तर-ए-अव्वल
क़ैसर का एक सफ़ीर दूर-दराज़ बयाबानों को तय कर के हज़रत-ए-उ’मर से मिलने को मदीने पहुंचा।
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
सुल्तान-ए-मन अमीन-ए-मन ज़ीनत-ए-इंतिज़ार-ए-मनआप की दीद-ए-सुकून-ए-दिल दरमाँ दिल-ए-अफ़गार-ए-मन