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पद
विरह -गगन तार गनत गइ रतिआ।।
गगन तार गनत गइ रतिआ।। गगन तार गनत गइ रतिआ।।गगन गहागह अनहद बाजत, बरसत अमृत धार।
शिवनारायण
पद
गगन घटा घहरानी साधो गगन घटा गहरानी
गगन घटा घहरानी साधो गगन घटा गहरानीपूरब दिस से उठी है बदरिया रिम-झिम बरसत पानी
कबीर
होरी
गगन मँडल अरूझाई नित फाग मची है
गगन मँडल अरूझाई, नित फाग मची हैगगन मँडल अरूझाई, नित फाग मची है
कबीर
साखी
चेतावनी का अंग- गगन मँडल में रम रहा तेरा संगी सोय ।
गगन मँडल में रम रहा तेरा संगी सोय ।बाहर भरमे हानि है अंतर दीपक जोय ।।
गरीब दास
पद
सुरत की साधना -सुर्त पनिहारी सतगुरु प्यारी चाल गगन के कूप।।
सुर्त पनिहारी सतगुरु प्यारी चली गगन के कूप।।प्रेम डोर ले पनघट आई भरी गगरिया खूब ।।
शिवदयाल सिंह
दोहा
गगन मध्य जो कंवल है बाजत अनहद तूर
गगन मध्य जो कंवल है बाजत अनहद तूरदल हजार को कमल है पहुंचै गुरू मत सूर
चरनदास जी
शबद
भेद का अंग - झरि लागै महलिया गगन घहराय
भेद का अंग - झरि लागै महलिया गगन घहरायझरि लागै महलिया गगन घहराय
महात्मा धनी धर्मदास जी
शबद
उपदेश - धुनि बजत गगन महँ बीना
धुनि बजत गगन महँ बीना जहँ आपु रास रस भीनाधुनि बजत गगन महँ बीना जहँ आपु रास रस भीना
भीखा साहेब
शबद
उपदेश का अंग - यहि बन गगन बजाव बँसुरिया
उपदेश का अंग - यहि बन गगन बजाव बँसुरियाकौनहुँ नहिं गुमान तकि भूलौ अंग अंग गलि जाई पसुरिया
जगजीवन साहेब
शबद
गुरुदेव - गगन कि धुनि जो आनई सोई गुरु मेरा
गगन कि धुनि जो आनई सोई गुरु मेरावो मेरा सिरताज है मैं वा का चेरा
पलटू साहेब
कुंडलिया
गगन बृच्छ के बीच में पंछी पवन चुगाय
गगन बृच्छ के बीच में पंछी पवन चुगाय