भेद का अंग - झरि लागै महलिया गगन घहराय
भेद का अंग - झरि लागै महलिया गगन घहराय
झरि लागै महलिया गगन घहराय
खन गरजै खन बिजुली चमकै
लहर उठै सोभा बरनि न जाय
सुन्न महल से अमृत बरसै
प्रेम अनँद होइ साध नहाय
खुली किबरिया मिटी अँधियरिया
धन सतगुरू जिन दिया है लखाय
'धरमदास' बिनवै कर जोरी
सतगुरू चरन में रहत समाय
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