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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
महशर में सुन के गर्मी-ए-बाज़ार-ए-मुस्तफ़ासारी ख़ुदाई होगी तलब-गार-ए-मुस्तफ़ा
अख़तर ख़ैराबादी
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ग़ज़ल
ख़ार-ए-हसरत दिल में लेकर उट्ठे बज़्म-ए-यार सेये वो कांटे हैं जिन्हें लाए हैं हम गुलज़ार से
शम्शाद लखनवी
सूफ़ी कहानी
एक शख़्स का नमाज़-ए-जमाअ’त के ना मिलने पर हसरत करना- दफ़्तर-ए-दोउम
एक शख़्स मस्जिद में दाख़िल हो रहा था। देखा कि लोग बाहर चले आ रहे हैं।
रूमी
ग़ज़ल
छुड़ा देती है फ़िक्र-ए-ग़ैर से तासीर-ए-मय-ख़ानामिली है अ’र्श की ज़ंजीर से ज़ंजीर-ए-मय-ख़ाना
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
ना'त-ओ-मनक़बत
रौनक़-ए-शान-ए-बे-निशाँ नाम-ओ-निशाँ में भी आजे़ब-ए-फ़िज़ा-ए-ला-मकाँ अब तो मकाँ में भी आ
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
ना'त-ओ-मनक़बत
या सय्यदी या मुस्तफ़ा बहर-ए-ख़ुदा चश्म-ए-करमऐ बादशाह-ए-अंबिया बहर-ए-ख़ुदा चश्म-ए-करम
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
ना'त-ओ-मनक़बत
चराग़-ए-ख़ाना-ए-ज़हरा-ओ-हैदर क़ुतुब-ए-रब्बानीगुल-ए-शादाब गुलज़ार-ए-महम्मद ग़ौस-ए-समदानी
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
ग़ज़ल
बहे हैं अश्क-ए-ख़ूँ रश्क-ए-हिना-ए-यार पर क्या क्यापिसे उ’श्शाक़ के दिल दस्त-ओ-पा-ए-यार पर क्या क्या
हसरत अज़ीमाबादी
कलाम
अपनी निगाह-ए-शौक़ को रोका करेंगे हमवो ख़ुद करें निगाह तो फिर क्या करेंगे हम