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निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी उद्धरण
इंसान दो दुनियाओं का मेल है, एक है "आलम-ए-ख़ल्क़" जिस से उसका बाहरी रूप जुड़ा है और दूसरा है "आलम-ए-अम्र" जिस से उस की रूह जुड़ी है।
शैख़ अहमद सरहिन्दी
सूफ़ी लेख
तज़्किरा कुतुब-ए-आलम हज़रत शाह क़ुतुब अली बनारसी
डॉ. इलतिफ़ात अमजदीख़ानक़ाह अमजदिया, स्टेशन रोड सीवान, बिहार
इल्तिफ़ात अमजदी
ना'त-ओ-मनक़बत
शैख़-ए-'आलम क़ुत्ब-ए-दौराँ हज़रत-ए-पीर-ए-मुजीबक़िब्ला-ए-दिल का'बा-ए-जाँ हज़रत-ए-पीर-ए-मुजीब
शाह हिलाल अहमद
ना'त-ओ-मनक़बत
ज़ुल्फ़-ए-लैला-ए-दो-’आलम का जिसे सौदा नहींहै वो दीवाना ख़ुदा को उस ने पहचाना नहीं
अख़तर ख़ैराबादी
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ना'त-ओ-मनक़बत
पीर-ए-पीराँ मीर-ए-मीराँ हज़रत-ए-ग़ौसुल-वराताजदार-ए-अहल-ए-'इरफ़ाँ हज़रत-ए-ग़ौसुल-वरा
सफ़ीउल आलम शहबाज़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
अमीर बख़्श साबरी
ना'त-ओ-मनक़बत
इश्तियाक़ आलम शहबाज़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
मोहम्मद मुस्तफ़ा महबूब-ए-दावर सरवर-ए-'आलमवो जिस के दम से मस्जूद-ए-मलाइक बन गया आदम
हफ़ीज़ जालंधरी
ना'त-ओ-मनक़बत
बाग़-ए-'आलम को मिला रंग-ए-बहाराँ तुझ सेबज़्म-ए-हस्ती का हुआ हुस्न नुमायाँ तुझ से
सूफ़ी तबस्सुम
ना'त-ओ-मनक़बत
हुज़ूर-ए-सरवर-ए-’आलम तबीब-ए-क़ल्ब-ए-हज़ींहबीब-ए-ख़ालिक़-ए-कुल रौनक़-ए-ज़मान-ओ-ज़मीं
मोहम्मद हुज़ैफ़ा
ना'त-ओ-मनक़बत
'आलम का शर्फ़ ख़िदमत-ए-मख़्दूम बिहारीमख़्दूम-ए-जहाँ हज़रत-ए-मख़्दूम बिहारी