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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
गए होश-ओ-ख़िरद इश्क़-ए-लब-ए-जाँ-बख़श-ए-जानाँ मेंक़यामत है हमारी नाव डूबी आब-ए-हैवाँ में
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
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ना'त-ओ-मनक़बत
तू शाह-ए-ख़ूबाँ तू जान-ए-जानाँ है चेहरा उम्मुल-किताब तेरान बन सकी है न बन सकेगा मिसाल तेरी जवाब तेरा
साइम चिश्ती
फ़ारसी कलाम
दारम दिले चूँ ग़ुंच: तंग अज़ इश्क़-ए-जानाँ दर बग़लमजरूह-ओ-ग़र्क़-ए-बह्र-ए-ख़ूँ अज़ ज़ख़्म-ए-पैकाँ दर बग़ल
शाह शुजा
फ़ारसी कलाम
ग़ुलाम-ए-इश्क़म व लुत्फ़-ओ-करम बहा-ए-मन अस्तकसे कि बन्द: ब-ख़्वानद मरा ख़ुदा-ए-मन अस्त
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
हाँ मुयस्सर जो तवाफ़-ए-दर-ए-जानाँ हो जाएसिर्फ़ फ़रियाद में क्यूँ 'उम्र गुरेज़ाँ हो जाए
फ़ज़ली अमेठवी
कलाम
आरज़ू-ए-वस्ल-ए-जानाँ में सहर होने लगीज़िंदगी मानिंद-ए-शम्अ' मुख़्तसर होने लगी
ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी
फ़ारसी कलाम
जोश ज़द मस्ती व चश्म-ए-दिलबराँ मय-ख़ान: शुदमुश्त-ए-ख़ाक-ए-मय परस्ताँ चर्ख़ ज़द-ओ-पैमान: शुद
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
शे'र
शाख़-ए-गुल हिलती नहीं ये बुलबुलों को बाग़ मेंहाथ अपने के इशारे से बुलाती है बहार
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
मेरे साथ आके रंग-ए-बज़्म-ए-जानाँ कौन देखेगादिल-ओ-जाँ नज़्र कर के ख़ून-ए-अरमाँ कौन देखेगा
काज़िम हुसैन राज़
फ़ारसी कलाम
जाँ रा ब-नक़्द-ए-जल्वः-ए-जानाँ फ़रोख़तमदिल रा ब-दस्त-ए-दिलबर-ए-फ़त्ताँ फ़रोख़तम