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ग़ीबत करना रिंदों का ऐ ज़ाहिद नही भला है
ग़ीबत गो पर ख़ालिक़ हर दम नाज़िल करे बला हैकिसी तरह नहीं ग़ीबत करना ऐ 'दिलदार' भला है
कवि दिलदार
सूफ़ी लेख
बक़ा-ए-इन्सानियत में सूफ़ियों का हिस्सा (हज़रत शाह तुराब अ’ली क़लंदर काकोरवी के हवाला से) - डॉक्टर मसऊ’द अनवर अ’लवी
ग़ीबत गर आपसे हो तो हक़ का ज़ुहूर है॥क्यों न हो वासिल ब-हक़ निकले जो आ’लम से तुराब।
मुनादी
ना'त-ओ-मनक़बत
ये अ'र्ज़ है 'शारिक़' की दिखला दो झलक अपनीअब पर्दा-ए-ग़ीबत से बाहर ज़रा आ जाना
शारिक़ रब्बानी
समस्त