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साखी
चेतावनी का अंग - पंछी उड़ै आकास कूँ कित कूँ कीन्हा गौन
पंछी उड़ै आकास कूँ कित कूँ कीन्हा गौनये मन ऐसे जात है जैसे बुदबुद पौन
गरीब दास
कविता
अंग सुगन्ध- प्यारी को परसि पौन गौन कियो जा बन में
प्यारी को परसि पौन गौन कियो जा बन में,ता बन के वृक्षन को चन्दन दृढ़ात है।
हिम्मत ख़ान
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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
नाम लेत मोय आवे संक्खा। ऐ सखी साजन ना सखी पंखा।।(160) रात दिना जाको है गौन। खुले द्वार वह आवे भौन।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
नाम लेत मोय आवे संक्खा। ऐ सखी साजन ना सखी पंखा।। (160) रात दिना जाको है गौन। खुले द्वार वह आवे भौन।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
नज़्म
बंजारा-नामा
जब चलते चलते रस्ते में ये गौन तिरी रह जावेगीइक बधिया तेरी मिट्टी पर फिर घास न चरने आवेगी