Sufinama

।। बरवै नायिका-भेद ।।

रहीम

।। बरवै नायिका-भेद ।।

रहीम

MORE BYरहीम

    ।। दोहा ।।

    कबित कह्यो दोहा कह्यो, तुल्यो छप्पय छंद

    बिरच्यो यहै विचारि कै, यह बरवै रस-कंद ।।1।।

    ।। बन्दना ।।

    बन्दौं देवि सरदवा, पद कर जोरि

    वरनौं काव्य बरैवा, लगइ खोरि ।।2।।

    ।। त्रिविध स्वकीयां ।।

    ।। मुग्धा ।।

    लहरत लहर लहरिया, लहर बहार

    मोतिन जरी किनरिया, बिथुरे बार ।।3।।

    लागौ आनि नबेलिअहि, मनसिज बान

    उकसन लागु उरोजवा, दिगै तिरछान ।।4।।

    ।। मध्या ।।

    निसुदिन चाहन चाहत, श्री व्रजराय

    लाज जोरावरि है, बसि करत अकाज ।।5।।

    रहत नैन के कोरवा, चितवनि छाय

    चलत पगु पैजनिआँ, मगु ठहराय ।।6।।

    ।। प्रौढ़ा ।।

    भोरहि बोलि कोइलिआ, बढ़वति ताप

    घरी एक घरि अलिपा, रहु चुपचार ।।7।।

    ।। मुग्धा भेद ।।

    ।। अज्ञात ।।

    कौन रोग दौ छतिआ, उकस्यो आइ

    दुखि-दुखि उठत करेजवा, लगि जनु लाइ ।।8।।

    ।। ज्ञात ।।

    औचक आइ जोबनवा, मोहि दुख दीन्ह

    छुटिगो संग गोइअवाँ, नहिं भल कीन्ह ।।9।।

    ।। नवोढ़ा ।।

    पहिरत चूनि चुनरिया, भूषन भाव

    नैनन्हि देत कजरवा, फूलनि-चाव ।।10।।

    ।। विस्रब्ध-नवोढ़ा ।।

    जघन जोरति गोरिआ, करति कठोर

    छुअन पावै पिअवा, कहुँ कुच-कोर ।।11।।

    ।। द्दिविध-परकीया ।।

    ।। ऊढ़ा ।।

    सुनि धुनि कान मुरलिआ, रागन-भेद

    गै मन छाँड़त गोरिआ, गनत खेद ।।12।।

    निसुदिन सासु ननँदिआ, मोहिं घर घेरु

    सुनन देत मुरलिआ, ना धुन टेरु ।।13।।

    ।। अनूढ़ा ।।

    मोहिं बर जोग कन्हैऔ, लागउँ पाँय

    तुमको पुजउँ देवतवा, होहु सहाय ।।14।।

    ।। परकीया (ऊढ़ा) के 6 भेद ।।

    ।। भूत-गुप्त ।।

    चूनत फूल गुलबवा, डार कटील

    टुटिगौ बन्द अँगिअवा, फटु पट नील ।।15।।

    अब नहिं तोहिं पढावों, सुगना सार

    परिगो दाग अधरवा, चोंच तुचार ।।16।।

    ।। भविष्य-गुप्त ।।

    होइ कत कारि बदरिआ, बरखत पाथ

    जै हौं, घन अमरइआ, संग साथ ।।17।।

    जै हौ चुनन कुसुमिआ, खेत बड़ि दूरि

    चेरिया केरि छोकरिआ, मोहिं सँग करि।।18।।

    ।। वचन-विदग्धा ।।

    तोरेसि नाक नथुनिआ, मित हित नीक

    कहेसि नाक पहिरावहु, चित दै सींक ।।19।।

    ।। क्रिया-विदग्धा ।।

    बाहर लै कै दिअवा, बारन जाइ

    सासु-ननँद घर पहुँचत, देत बुताइ ।।20।।

    ।। लक्षित ।।

    आजु नैन के कोरवा, औरै भाँति

    नागर नेह नवेलिहि, मूँदि जाति ।।21।।

    ।। मुदिता ।।

    जै हौं कान्ह नेवतवा, भो दुख दून

    बहू करै रखवरिआ, है घर सून ।।22।।

    नेवते गई ननँदिआ, मैके सास

    दुलहिनि तोरि खबरिआ, पिअ पास ।।23।।

    ।। कुलटा ।।

    जस मदभातल हथिआ, हुमकति जाय

    चितवत छैलव तरुनिआ, मुह मुसुकाय ।।24।।

    चितवत ऊँचि अटरिआ, दाहिन बाम

    लाखन लखत बिदेसिआ, ह्रै बस काम ।।25।।

    ।। प्रथम अनुसयना ।।

    जमुना-तीर तरुनिअहि, लखि भौ सूल

    झरिगो कुंज-बेअलिआ, फूलत फूल ।।26।।

    ग्रीषम दहत दवरिआ, कुञ्ज-कुटीर

    तिमि-तिमि तकत तरुनि अहि, बाढ़त पीर ।।27।।

    ।। द्वितीय अनुसयना ।।

    धीरज धरू किन गोरिआ, करि अनुराग

    जात जहाँ पिअ देसवा, घन बर बाग ।।28।।

    जनि मरु रोइ दुलहिआ, करि मन ऊँन

    सघन कुंज ससुररिआ, घर सून ।।29।।

    ।। तृतीय अनुसयना ।।

    मितवा करनि पसुरिआ, सुमन सपात

    फिरि-फिरि ताकि तरुनिआ, मन पछितात ।।30।।

    मित उतते फिरि आओ, देखि अराम

    मैं गई अमरैआ, रह्यो काम ।।31।।

    ।। गणिका ।।

    लखि लखि धनिक नयकवा, बनवति भेख

    रहि गइ हेरि अरसिआ, कजरा रेख ।।32।।

    ।। अन्य सम्भोग दुःखिता ।।

    मैं पठई जेहि कजवा, आइस साधि

    छुटिगो सीस जुरववा, दिढ़ करि बाँधि ।।33।।

    सखि इत हरबर आवत, भो पथ खेद

    रहि-रहि लेत उससवा, तन सेद ।।34।।

    ।। रूप-गर्विता ।।

    छीन, मलिन, विष-भइआ, औगुन तीन

    मोहिं कह चन्द-बदनिआ, पिय मति हीन ।।35।।

    रातुल भयसि मुगतआ, निरस पखान

    यह मधु-भरल अधरवा, करसि समान ।।36।।

    ।। प्रेम-गर्वित ।।

    आपुहि देत कजरवा, गूँदत हार

    चुनि पहिराव चुनरिआ, प्रान-अधार ।।37।।

    औरन पाँय जवकवा, नाहन दीन

    तुम्हैं अँगोरत गोरिआ, न्हान कीन ।।38।।

    ।। नायिकावों के और दस भेद ।।

    ।। (1) प्रोषितपतिका ।।

    ।। मुग्धा-प्रोषिपतिका ।।

    तै अब जासि बेइलिआ, जरि-बरि मूल

    बिनु पिय सूल करेजवा, लखि तुव फूल ।।39।।

    ।। मध्या-प्रोषितपतिका ।।

    का तुव मंजु लतिअवा, झलति जाय

    पिअ बिन मन हुड़कइया, मोहिं सुहाय ।।40।।

    ।। प्रौढ़ा-प्रोषितपतिका ।।

    कासन कहउँ सँदेसवा, पिअ परदेसु

    लागेउ जइत फूले, तेहि बन टेसु ।।41।।

    ।। (2) खण्डित ।।

    ।। मुग्धा-खण्डित ।।

    सखि-सिख सीखि नबेलिआ, कीन्हेसि मान

    पिय लखि कोप भवनवाँ, ठानेसि ठान ।।42।।

    सीस नवाइ नबेलिया, निचवा जोइ

    छिति खनि छोर छिगुनिआ, ससुकन रोइ ।।43।।

    ।। मध्या-खण्डिता ।।

    ठगि गो पीअ पलँगिआ, आलस पाइ

    पौढ़हु जाइ बरोठवा, सेज बिछाइ ।।44।।

    पोछेहु अनख कजरवा, जावक भाल

    उपटेउ पीतम छतिया, बिन गुन माल ।।45।।

    ।। प्रौढ़ा-खण्डिता ।।

    पिय आवत अगनइआ, उठि कै लीन्ह

    बिहसत चतुर तिरिअवा, बैठन दीन्ह ।।46।।

    ।। परकीया-खण्डिता ।।

    जेहि लगि सजन सनेहिया, छुट घर बार

    अपने होत पिअरवा, साँच परार ।।47।।

    पौढ़हु पीअ पलँगिआ, मींजउँ पाय

    रैनि जगे कर निंदिआ, सब मिटि जाय ।।48।।

    ।। गणिका-खण्डिता ।।

    मितवा ओठ कजरवा, जावक भाल

    लिहेसि काढ़ि बरिअइआ, तकि मनिमाल ।।49।।

    ।। (3) कलहान्तरिता ।।

    ।। मुग्धा-कलहान्तरिता ।।

    आयहु अबहिं गवनवाँ, तुरतहि मान

    अब रस लागि गोरिअवा, मन पछितान ।।50।।

    ।। मध्या-कलहान्तरिता ।।

    मैं मति मन्द तिरिअवा, परलेउ भोरि

    ते नहिं कन्त मनवलेउँ, तोहिं कछु खोरि ।।51।।

    ।। प्रौढ़ा-कलहान्तरिता ।।

    थकि गौ करि मनुहरिआ, फिरि गौ पीव

    मैं उठि तुरत लायउँ, हिमकर हीव ।।52।।

    ।। परकीया-कलहान्तरिता ।।

    जेहि लगि कीन बिरोगवा, ननद जेठानि

    लीन लाइ करेजवा, तेहि हित जानि ।।53।।

    ।। गणिका-कलहान्तरिता ।।

    जेहि दीन्हे बहु बेरिया, मोहिं मनि-माल

    तेहते रूठेउँ सखिआ, फिरि गौ लाल ।।54।।

    ।। (4) बिमलब्धा ।।

    ।। मुग्धा-बिप्रलब्धा ।।

    मिलेउ कन्त सहेटवा, लखेउ डेराइ

    धनिआ कमल बदनिआ, गौ कुभिलाइ ।।55।।

    ।। मध्या-बिप्रलब्धा ।।

    लखेसि केलि-भवनवाँ, नन्द कुमार

    लै-लै ऊँवि उससवा, ह्वइ बिकरार ।।56।।

    ।। प्रौढ़ा-बिप्रलब्धा ।।

    देखि कन्त सहेटवा, भो दुख पूरि

    रोवत नैन कजरवा, ह्वै गौ दूरि।।।57।।

    ।। परकीया-बिप्रलब्धा ।।

    बैरिनि मह अभिसरवा, अति दुखदानि

    तापर मिल्यो मितवा, भो पछितानी ।।58।।

    ।। गणिका-बिप्रलब्धा ।।

    करिकै सोहर सिंगरवा, अतर लगाइ

    मिलेउ लाल सहेटवा, फिरि पछिताइ ।।59।।

    ।। (5) उत्कण्ठिता ।।

    ।। मुग्धा-उत्कण्ठिता ।।

    गौ जुग जाम जमिनिआ, पिय नहिं आइ

    राखेहु कौन सवतिआ, धौं बिलमाइ ।।60।।

    ।। मध्या-उत्कण्ठिता ।।

    जोहत परी पलँगिआ, पिय कै बाट

    बेचेउ चतुर तिरिअवा, धौं केहि हाट ।।61।।

    ।। प्रौढ़ा-उत्कण्ठिता ।।

    पिय-पथ हेरति गोरिआ, भो भिनुसार

    चलहु करिहि तिरिअवा, तुव इतबार ।।62।।

    ।। परकीया-उत्कण्ठिता ।।

    उठि-उठि जात खिरकिआ, जोहन बाट

    कत वह आइहि मितवा, सूनी खाट ।।63।।

    ।। गणिका-उत्खण्ठिता ।।

    कढ़ि नींद भिनुसरवा, आलस पाइ

    धन दै मूरूख मितवा, रहत लोभाइ ।।64।।

    ।। (6) बासकसज्जा ।।

    ।। मुग्धा-बासकसज्जा ।।

    हरुए गवन नबेलिआ, डीठि बचाइ

    पौढ़ी जाइ पलँगिआ, सेज बिछाइ ।।65।।

    ।। मध्या-बासकसज्जा ।।

    सेज बिछाइ पलँगिआ, अंग सिंगार

    चितवत चौंकि तरुनिआ, दै दिग-द्वार ।।66।।

    ।। प्रौढ़ा-बासकसज्जा ।।

    हँसि-हँसि हेरि अरसिआ, सहज सिंगार

    उतरत चढ़त नबेलिआ, पियकै बार ।।67।।

    ।। परकीया-बासकसज्जा ।।

    सोवत सब गुरु लोगवा, जानेउ बाल

    दीन्हेसि खोलि खिरकिआ, उठिकै हाल ।।68।।

    ।। गणिका-बासकसज्जा ।।

    कीन्हेसि सबै सिंगरवा, चातुर बाल

    ऐहै प्रान पियरवा, लै मनि-माल ।।69।।

    ।। (7) स्वाधीनपतिका ।।

    ।। मुग्धा-स्वाधीनपतिका ।।

    आपुहिं देत जवकवा, गहि-गहि पाँइ

    आपु देत मोहि पिअवा, पान खवाइ ।।70।।

    ।। मध्या-स्वाधीनपतिका ।।

    पीतम करत पिअरवा, कहल जात

    रहत गढ़ावत सोनवा, यहै सिरात ।।71।।

    ।। प्रौढ़ा-स्वाधीनपतिका ।।

    मैं अरु मोर पिअरवा, जस जल-मीन

    बिछुरत तजत परनवाँ, रहत अधीन ।।72।।

    ।। परकीया-स्वाधीनपतिका ।।

    भौ जुग नयन चकोरवा, पिअ मुख चन्द

    जानति है तिअ अपने, मोहि सुख-कन्द ।।73।।

    ।। गणिका-स्वाधीनपतिका ।।

    लै हीरन के हरवा, मोतिका माल

    मोहि रहत पहिरावत, बसि ह्वै लाल ।।74।।

    ।। (8) अभिसारिका ।।

    ।। मुग्धा-अभिसारिका ।।

    चलीं लवाइ नबेलिअहि, सखि सब संग

    जस हुलसत गो गोदवा, मत्त मतंग ।।75।।

    ।। मध्या-अभिसारिका ।।

    पहिरे लाल अछुअवा, तिअ मज-पाय

    चढ़िकै नेह-हथियवा, हुलसत जाय ।।76।।

    ।। प्रौढ़ा-अभिसारिका ।।

    चली रइनि अधिअरिआ, साहस गाढ़ि

    पाँयन केरि ककरिआ, डारेसि काढ़ि ।।77।।

    ।। परकीया-कृष्णाभिसारिका ।।

    नील मनिन के हरवा, नील सिंगार

    किए रइनि अधिअरिआ, धनि अभिसार ।।78।।

    ।। परकीया-शुल्काभिसारिका ।।

    सेत कुसुम के हरवा, भूषन सेत

    चली रैनि उजिअरिआ, पिअ के हेत ।।79।।

    ।। दिवा-अभिसारिका ।।

    पहिरि बसन जहितरिआ, पिअ के हेत

    चली जेठ दुपहरिया, मिलि रवि जोति ।।80।।

    ।। गणिका-अभिसारिका ।।

    धन-हित कीन्ह सिंगरवा चातुर बाल

    चली संग लै चेरिआ, जहँवा लाल ।।81।।

    ।। (9) प्रवत्स्यत्प्रेयसी ।।

    ।। मुग्धा-प्रवत्स्यत्प्रेयसी ।।

    परिगौ कानन सखिआ, पिअ को गौन

    बैठी कनन पलँगिआ, होइकै मौन ।।82।।

    ।। मध्या-प्रवत्स्यत्प्रेयसी ।।

    सुठि सुकुमार तरुनिआ, सुनि पिअ गौन

    लाजनि पौढ़ि ओबरिआ, ह्वै कै मौन ।।83।।

    ।। प्रौढ़ा-प्रवत्स्यत्प्रेयसी ।।

    बन घन फूलि टेसुइआ, बगियन बेलि

    तब पिअ चलेउ बिदेसवा, फागुन फैलि ।।84।।

    ।। परकीया-प्रवत्स्यत्प्रेयसी ।।

    मितवा चलेउ बिदेसवा, मन अनुरागि

    पिअ की सुरति गगरिया, रहि मग लागि ।।85।।

    ।। गणिका-प्रवत्स्यत्प्रेयसी ।।

    पीतम एक सुमिरिनिआ, मोंहि दै जाहु

    जेहिं जपि तोर बिरहवा, करब निबाहु ।।86।।

    ।। (10) आगतपतिका ।।

    बहुत दिना पर पिअवा, आयउ आजु

    पुलकित नवल बधुइआ, कर घर-काजु ।।87।।

    ।। मध्या-आगतपतिका ।।

    पिअवा पौरि दुअरवा, उठि किन देखु

    दुरलभ पाइ बिदेसिआ, जिअकै लैखु ।। 88।।

    ।। प्रौढ़ा-आगपतिका ।।

    योबन प्रान पिअरवा, हेरेउ आइ

    तलफत मीन तिरिअवा, जस जल पाइ ।।89।।

    ।। परकीया-आगपतिका ।।

    पूछत चली खबरिया, मितवा तीर

    नैहर खोज तिरिअवा, पहिरि सुचीर ।।90।।

    ।। गणिका-आगतपतिका ।।

    तौं लगि मिटै मितवा, तनकी पीर

    जौं लगि पहिरि छतिआ, नख-नग-चीर ।।91।।

    ।। पुनः त्रिविध नायिका-भेद ।।

    ।। उत्तम ।।

    लखि अपराध नयकवा, नहिं रिस कीन्ह

    बिहँसत चँदन-चउकिया, बैठन दीन ।।92।।

    ।। मध्यमा ।।

    बिन गुन पिअ उर हरवा, उपटेउ हेरि

    चुप ह्वै चित्र-पुतरिया, रहि चख फेरि ।।93।।

    ।। अधमा ।।

    बार-बार गुरु मनवा, जनि करु नारि

    मानिक गजमोतिआ, जौं लगि बारि ।।94।।

    ।। सखि के काम ।।

    ।। मण्डन ।।

    सखिअन कीन सिंगरवा, रचि बहु भाँति

    हेरति नैन अरसिआ, मुख मुसकाति ।।95।।

    ।। शिक्षा ।।

    थके बैठि गोड़वरिआ, मींजहु पाँउ

    पिअ तन पेखि गरमिया, बिजन डोलाउ ।।96।।

    ।। उपलंभ ।।

    चुप रह्यौ सँदेसवा, सुनि मुसुकाय

    पिअ निज हाथ बिरवना, दीन पठाय ।।97।।

    ।। परिहास ।।

    बिहँसत भौंह चढ़ाए, धनुष मनोज

    लावत उर अबलनिआँ, ऐंठि उरोज ।।98।।

    ।। दर्शन ।।

    ।। साक्षात-दर्शन ।।

    बिरहिनि और बिदेसिआ, भौ एक ठौर

    पिअ मुख तकत तिरिअवा, चन्द चकोर ।।99।।

    ।। चित्र-दर्शन ।।

    पिअ मूरति चित-सरिया, देखत बाल

    बितवत अवधि बसरवा, जपि-जपि माल ।।100।।

    ।। अवण-दर्शन ।।

    आयउ मीत बिदेसिआ, सुनु सखि तोर

    उठि किन करसि सिगँरवा, सुनि सिख मोर ।।101।।

    ।। स्वप्न-दर्शन ।।

    पीतम मिलेउ सपनवाँ, भौ सुख-खानि

    आनि जगायसि चेरिआ, भइ दुख-दानि ।।102।।

    ।। नायक ।।

    ।। लक्षण ।।

    सुन्दर चतुर धनिकवा, कुल को ऊँच

    केलि-कला परबिनवा, सील समूच ।।103।।

    पति उपपति बैसिकवा, त्रिबिध बखानि

    विधि सों ब्याह्यो मुरुजन, पति सो जानि ।।104।।

    ।। पति ।।

    लैकै सुघर पुरुषवा, पिअ के साथ

    छपरो एक छतरिआ, बरखत पाथ ।।105।।

    ।। उपपति ।।

    झाँकि झरोखे गोरिआ, आँखिन जोर

    फिरि चितवति चित मितवा, करत निहोर ।।106।।

    ।। बैसिक ।।

    जनु अति नील अलकिया, बनसी लाय

    मो मन बार बधुअवा, मीन बझाय ।।107।।

    ।। चतुर्विध-पति ।।

    ।। अनुकूल ।।

    करत नही अपरधवा, सपनेहुँ पीव

    मान करै को सधवा, रहिगौ जीव ।।108।।

    ।। दक्षिण ।।

    सब मिलि करैं निहोरवा, हम कहँ देइ

    गुहि-गुहि चम्पक टँड़िआ, उचइ सो लेइ ।।109।।

    ।। धृष्ट ।।

    जहवाँ जगे रइनिआँ, तहवाँ जाउ

    जोरि नयन निरलजवा, कत मुसकाउ ।।110।।

    ।। शठ ।।

    छूटयो लाज गरिअवा, कुल-कानि

    करत रोज अपरधवा, परि गइ बानि ।।111।।

    ।। पुनः चतुर्विध नायक ।।

    ।। क्रिया-चतुर नायक ।।

    खेलत जानिसि टोलिआ, नन्द किसोर

    छुइ बृषभानु-कुँअरिआ, होइगो चोर ।।112।।

    ।। वचन-चतुर नायक ।।

    सघन कुँज अमरैआ, सीतल छाँहि

    झगरति आइ कोइलिआ, फिरि उड़ि जाहि ।।113।।

    ।। मानी-नायक ।।

    अब जनम भरि सखिआ, ताकौं ओहि

    ऐंठत गो अभिमनवा, तजि कै मोहि ।।114।।

    प्रोषित-नायक ।।

    करिबै ऊँचि अटरिआ, तिअ सँग केलि

    कबधौं पहिरि गजरवा, हार चमेलि ।।115।।

    ।। इति बरवै नायिका-भेद समाप्त ।।

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