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सलोक
फ़रीदा सुता है ताँ जाग घना सवसीं गोर महं
फ़रीदा सुता है ताँ जाग घना सवसीं गोर महंबिन अ'मलाँ सोहाग गलीं रब्ब ना पाईअह
बाबा फ़रीद
शबद
थोडा मिलना सुख घना मन में रहै हुलास
थोडा मिलना सुख घना मन में रहै हुलासबहुत मेल मिलाप से होय प्रीत का नास
ईष्वरदास
अरिल्ल
महमूदी चौतार हजारा पहिरता ।
तुरी अठारह लाख ऊँट गैबर घना ।सीस महल में सैल बाग नौलख बना ।।
गरीब दास
गूजरी सूफ़ी काव्य
ईसा और खोपड़ी
खोपड़ी बोली ये ईसा सुं सुख़न-मुर्द घना हो गए मुझे कूं करन।
मिस्कीन गुजराती
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पद
सद्गुरू-महिमा के पद - म्हाने सन्तां में रमती ने मती बरजो म्हारी माय
'मीराँ कहे प्रभू गिरिधर नागरम्हारे सत-गुरु घना दयालू ऐ माय
मीराबाई
शबद
वो देश दिवाना जी पहुँचै कोई सन्त जना
बरखै अमिरत बरखा जी पाया आनंद घनाहोवै शब्द अखंडित जी बज रह्या रैन बिना
ईष्वरदास
सलोक
फ़रीदा जाना ई ताँ जाग होईआ परभात
फ़रीदा जाना ई ताँ जाग होईआ परभातइस जागण नूँ पछताएँगा घना सोवेंगा रात
बाबा फ़रीद
सलोक
फ़रीदा राती चार पहर तू सुता कूँ जाग
फ़रीदा राती चार पहर तू सुता कूँ जागघना सोवसी गोर मह लहसिया इहु विरागु