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कलाम
घनी शाख़ों में छुप कर जब कोई चिड़िया चहकती हैतो मेरे दिल में क्यूँ हसरत की चिंगारी भड़कती है
अहमद नदीम क़ासमी
छंद
नीकी घनी गुन नारि निहारि नेवारि तऊ अँखियाँ ललचाती ।
नीकी घनी गुन नारि निहारि नेवारि तऊ अँखियाँ ललचाती ।जान अजानन जो रित दीठि बसीठि के ठौरन औरन हाती ।।
प्रवीण राय
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सूफ़ी लेख
कबीरपंथी और दरियापंथी साहित्य में माया की परिकल्पना - सुरेशचंद्र मिश्र
शगुना सीमर बेगि तजु, घनी बिगूचन पांख। ऐसा सीमरस सेवे, जाके हृदय न आंख।।1
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
इस प्रति के अंत में ये तीन दोहे हैं------ जद्यपि है सोभा घनी मुक्ताहल मैं देखि।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सतसई
।। बिहारी सतसई ।।
औरै ओप कनीनिकनु गनी घनी सिरताज।मनीं धनी के नेह की बनीं छनीं पट लाज।।4।।
बिहारी
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(97) एक रूख में अचरज देखा डाल घनी दिखलाके।एक है पत्ता वाके ऊपर माथ कुछ कुम्हलावे।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(97) एक रूख में अचरज देखा डाल घनी दिखलाके। एक है पत्ता वाके ऊपर माथ कुछ कुम्हलावे।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
राग आधारित पद
राग मंगल- उठो सोहंगम नारि प्रीति पिया सों करो
होत सब्द घनघोर संख धुनि अति घनीतंतन की झनकार बजत झीनी झिनी
कबीर
सलोक
फ़रीदा जेते अवगुन मुझ में चंमी अंदर वार
फ़रीदा जेते अवगुन मुझ में चंमी अंदर वारघनी खुआरी हो रहे जे आनन बाहरवार
बाबा फ़रीद
पद
सत्संग-उपदेश का अंग - लग रहना लग रहना हरि भजन सें लग रहना लग रहना
शूरे पूरे का पारखा रे लड़े घनी से ज़ोरज्ञान कटारी बड़ी रे गुरु गोविंद तलवार