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दोहा
सदा सीत भयभीत नर, व्याघ्र सिंह वृष घोर।
सदा सीत भयभीत नर, व्याघ्र सिंह वृष घोर।कीजै नही पयान पिय, उत्तर दिसि को ओर।।
गोपाल चंद्र मिश्र
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शे'र
जीवन की उलझी राहों में जब घोर अंधेरा आता हैहाथों में लिए रौशन मशअ'ल तो गुरु हमारे मिलते हैं
अब्दुल हादी काविश
महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
परिपोषक भय भाव को सोइ भयानक जानि।बसत घोर धुनि घोर लहि सदा होत है आनि।।109)।।
रसलीन
सूफ़ी लेख
निर्गुण कविता की समाप्ति के कारण, श्री प्रभाकर माचवे - Ank-1, 1956
कासेयाची मूडा किरसी संसार पुढे तो अघोर घोर आहे
भारतीय साहित्य पत्रिका
कवित्त
अवधपुरी घुमडि घटा रही छाय ।
अवधपुरी घुमडि घटा रही छाय ।चलत सुमन्द पवन पुरवाई नभ घन घोर मचाय ।।
प्रताप कुंवरी बाई
पद
श्री बृन्दावन मो अजयत ब्रिजराज बिराजत है
गीतनृत्यगति हावभाव इति धिमिकिति धिमिकितिधिमि धिमि धिमि धिमि घोर गर्जत पखवाज साजकी,
अमृत राय
कविता
घन हैं न कारे कारे भारे गजराज हैं री,
चंद्रकला चपला न चमक असिन की है,गरज न रोष भारी सेना घोर गाजी है ।
चंद्रकला बाई
राग आधारित पद
कजली- बरखा लागा मोरी गुइयां सैयां नाहीं आये मोर।
बरखा लागा मोरी गुइयां सैयां नाहीं आये मोर।रिमझिम रिमझिम मेधवा बरसे घटा उठी घन घोर।।
मुस्तफ़ा ख़ान यकरंग
कुंडलिया
हारे भूली गैल में, गे अति पांय पिराय।
थोरो सो दिन आय, रहे है संग न साथी।या बन है चहु ओर, घोर मतवारे हाथी।।
दीनदयाल गिरि
पद
अब चल भाई हमारे साथ
अपने महलकु अकल से जाना घोर अँधारी रात ।।इस दुनीया से फरीग होना ऐसी बड़ों की बात ।।
माधव मुनीष्वर
छंद
रावन बान महाबली और अदेव और देवनहूं दृग जोरयो।
घोर कठोर चितै सहजै लछिराम अमी जस दीपन घोरयो।राजकुमार सरोज-से हाथन सों गहि शंभु-सरासन तोरयो।।
लछिराम
कविता
नायकोक्ति- बीर रन दौर पै ज्यों पिक अम्ब-भौर पे ज्यो
बीर रन दौर पै ज्यों पिक अम्ब-मौर पे ज्यो,मोर घन घोर पै ज्यों करै नित कूक है।
करीम
राग आधारित पद
राग धनाश्री - हरि कत भये ब्रज के चोर
षटकन्ध अधर मिलाप उर पर अजयरिपु की घोरसूर अबलन मरत ज्यावो मिलो नन्दकिशोर