आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "चश्म-ए-तर"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "चश्म-ए-तर"
ग़ज़ल
शबनम तो बाग़ में है न यूँ चश्म-ए-तर कि हम
ग़ुंचः भी इस क़दर है न ख़ूनी जिगर कि हम
मीर मोहम्मद बेदार
ना'त-ओ-मनक़बत
अदब से अ'र्ज़ है बा-चश्म-ए-तर ग़रीब-नवाज़
इधर भी एक उचटती नज़र ग़रीब-नवाज़
पीर नसीरुद्दीन नसीर
शब्दकोश से सम्बंधित परिणाम
अन्य परिणाम "चश्म-ए-तर"
ग़ज़ल
चमन में सुब्ह ये कहती थी हो कर चश्म-ए-तर शबनम
बहार-ए-बाग़ गो यूँ ही रही लेकिन किधर शबनम
ख़्वाजा मीर दर्द
फ़ारसी कलाम
चु बा तर-दामनी ख़ूँ कर्द 'ख़ुसरौ' बा दो चश्म-ए-तर
ब-आब-ए-चश्म-ए-मिज़गाँ दामनश हमवार:-तर बादा
अमीर ख़ुसरौ
ग़ज़ल
ब-वक़्त-ए-नज़्अ' बालीं पर 'असीर' इस तरह वो आए
बनी है ग़म की सूरत चश्म-ए-तर है दिल पशेमाँ है
असीर मुहम्मदाबादी
सूफ़ी लेख
हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल
इस मुसीबत में अगर तूने ख़बर मेरी न ली
ग़र्क़ कर ड़ालेगी आख़िर को ये चश्म-ए-तर मुझे
सूफ़ीनामा आर्काइव
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ पर
अकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ग़ज़ल
चश्म-ए-तर ‘बेख़ुद’ से पूछा हाल तो कहने लगा
ख़ुद से जब बे-ख़ुद हुए तो ख़ुद-सरी जाती रही
बेख़ुद सुहरावरदी
कलाम
राज़-ए-उल्फ़त खुल न जाए बात रह जाए मिरी
बज़्म-ए-जानाँ में इलाही चश्म-ए-तर होने लगी
ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी
ग़ज़ल
चराग़-ए-मह सीं रौशन-तर है हुस्न-ए-बे-मिसाल उस का
कि चौथे चर्ख़ पर ख़ुर्शीद है अक्स-ए-जमाल उस का
सिराज औरंगाबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
हम भी देखें चश्म-ए-तर से एक दिन तेरा हरम
है यही हसरत हमारी ख़ालिक़-ए-कौन-ओ-मकाँ
सद्दाम हुसैन नाज़ाँ
ना'त-ओ-मनक़बत
रही जो उम्मत-ए-आ'सी के ग़म में रोती मुदाम
मेरे हबीब की उस चश्म-ए-तर की बात करो