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दामन-ए-मुस्तफ़ा थाम लो 'आसियो

अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी

दामन-ए-मुस्तफ़ा थाम लो 'आसियो

अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी

MORE BYअ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी

    दामन-ए-मुस्तफ़ा थाम लो 'आसियो

    आएँगी रहमतें जोश पर आज भी

    लूट सकते हो गर लूट लो बे-ख़तर

    उन का जारी है फ़ैज़-ए-नज़र आज भी

    चौदह सौ साल पहले जो उठी नज़र

    चाँद दो हो गया एक पल में मगर

    ’अज़्मत-ए-मुस्तफ़ा की अरे बे-ख़बर

    दे रहा है शहादत क़मर आज भी

    दे रही हैं मदीने की गलियाँ सदा

    अब भी जोबन पे है गुलशन-ए-मुस्तफ़ा

    जिस जगह से हैं गुज़रे हबीब-ए-ख़ुदा

    महक देती है वो रह-गुज़र आज भी

    अपने अल्लाह से आक़ा का दर माँग लो

    अपने आक़ा से अल्लाह का घर माँग लो

    उन से रहमत भरी इक नज़र माँग लो

    होगी तारीकियों में फ़जर आज भी

    जो झुके उन के दर ऐसा सर माँग लो

    बे-ख़बर हो तो उन की ख़बर माँग लो

    याद-ए-सरकार में चश्म-ए-तर माँग लो

    ज़िंदगी ख़ूब होगी बसर आज भी

    ना'त सरमाया-ए-ज़िंदगी बन गई

    ज़िक्र उन का मेरी बंदगी बन गई

    मुर्दा-दिल के लिए ताज़गी बन गई

    नाम-ए-सरकार में है असर आज भी

    हर घड़ी नाम ले अपनी सरकार का

    तू 'नियाज़ी' मदीने के ग़म-ख़्वार का

    बन जा साएल मोहम्मदिन के दरबार का

    फिर ये तेरे हैं शाम-ओ-सहर आज भी

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुल्लियात-ए-नियाज़ी (पृष्ठ 14)

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