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अंतिम मनोवृत्ति -अंति कालि जो लछमी सिमरै, ऐसी चिंता महि जे मरै।
प्रेत जोनि बलि बलि अउतरै।।अंति कालि नाराइण सिमरै, ऐसी चिंता महि जे मरै।
त्रिलोचन
दोहा
रहिमन कठिन चितान ते चिंता को चित चेत
रहिमन कठिन चितान ते चिंता को चित चेतचिता दहति निर्जीव को चिंता जीव समेत
रहीम
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सलोक
खरग मद्धे खगौ जांत तस्य मारगे गतांच।
'खरग' मद्धे खगौ जांत तस्य मारगे गतांच।मृत्युकस्य जथा चिंता ब्रह्म ज्ञानं 'साज्जते'।।
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
अखैराम के सतगुरु, गुरु छौना सखकंद। चिंता टारन भै हरन, मेटत सब दुख दंद।।10।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी कहावत
ता गम़ नख़ोरी ग़मगुसारी न रसी
जब तक आप दूसरों की चिंता नहीं करते, तब तक कोई भी आपकी चिंता नहीं करेगा
वाचिक परंपरा
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
औरहिं चिंता करन दे, तू मति मारे आह।जा के मोदी राम से, ताहि कहा परवाह।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य
औरहिं चिंता करन दे, तू मति मारे आह। जा के मोदी राम से, ताहि कहा परवाह।।
परशुराम चतुर्वेदी
सूफ़ी कहावत
गम-ए-फ़र्दा न शायद ख़ुर्दन इमरोज़
आज किसी को कल की परेशानी की चिंता नहीं करनी चाहिए।