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ग़ज़ल
'मज्ज़ूब' के जज़्बे की जो समझे न हक़ीक़तउन 'अक़्ल के अंधों को ये 'सौदा' नज़र आया
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ना'त-ओ-मनक़बत
हज़रत-ए-शब्बीर के जज़्बे ने ऐसा कर दियापरचम-ए-दीन-ए-ख़ुदा-ए-पाक ऊँचा कर दिया
नूर आलम मिसबाही
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ना'त-ओ-मनक़बत
बात ये जज़्बे की है जज़्बात की हरगिज़ नहींजज़्बा-ए-ईसार-ओ-क़ुर्बानी 'अजब ज़ैनब में है
डॉ. मंसूर फ़रिदी
ग़ज़ल
दह्र में मय-कश वफ़ादारी के जज़्बे अब कहाँइस ख़राबे में कहीं नक़्श-ए-वफ़ा मिलता नहीं
अज़मत हुसैन ख़ान
ग़ज़ल
है जब तक प्यार दुनिया में चलेगी साँस दुनिया कीमगर खो जाएँगे जब प्यार के जज़्बे तो क्या होगा
जलाल अकबर
सूफ़ी लेख
हज़रत मौलाना शाह हिलाल अहमद क़ादरी मुजीबी
आपका यूँ रुख़्सत हो जाना किसी एक शोबे की कड़ी का टूट जाना नहीं है बल्कि
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
आदाब-ए-समाअ’ पर एक नज़र - मैकश अकबराबादी
फिर भी अगर कोई ख़ुश-इल्हान क़ारी क़ुरआन पढ़ता है तो ये निस्बत दूसरे के पढ़ने के
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
चूँकि उ’र्फ़ी के शबाब का ज़माना हिन्दुस्तान ही में गुज़रा इसलिए हिंद की निगाहों से उसका
ज़माना
सूफ़ी लेख
चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
चिश्तिया सिलसिला के मशाएख़ की हिदायत थी कि इन्सान को नेक-ओ-बद सब के साथ नेकी करनी