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दकनी सूफ़ी काव्य
अर्जी पोंचावे हुज़ूर नामदेव लाया नज़र
किदर रह्या पंढरपुर मेरा वसीला है दूरकौन कहेगा हुजूर ये जरूर हकीकत
गोंडा
छंद
मैं तो यह जानी हो कि लोकनाथ पति पाय,
अब तौ जरूर तुम्हे अरज करे ही बने,वे हू द्विज जानि फरमाय हैं कि फिरजा ।
कविरानी
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सूफ़ी उद्धरण
रूह की गहराई से निकली हुई बात रूह की गहराई तक ज़रूर जाएगी।
रूह की गहराई से निकली हुई बात रूह की गहराई तक ज़रूर जाएगी।
वासिफ़ अली वासिफ़
सूफ़ी उद्धरण
आसमानों पर निगाह ज़रूर रखो लेकिन ये न भूलो कि पाँव ज़मीन पर ही रखे जाते हैं।
आसमानों पर निगाह ज़रूर रखो लेकिन ये न भूलो कि पाँव ज़मीन पर ही रखे जाते हैं।
वासिफ़ अली वासिफ़
ना'त-ओ-मनक़बत
जुनून-ए-इ'श्क़ का दा'वा ज़रूर करते हुएचलूँगा हश्र में फ़ख़्र-ओ-ग़ुरूर करते हुए
साक़िब ख़ैराबादी
पद
अव्वल याद करो वस्ताद की
तो ऐसा करूँ की गुरू के पाँव कबी न छोड़ोवहाँ कोई का न चले ममता नागन का जरूर बुरा है
एकनाथ
सूफ़ी लेख
सूर की सामाजिक सोच, डॉक्टर रमेश चन्द्र सिंह
भूल यह थी कि महाराने के पाण्डे न बच्चों को जाति-पाँति के भेद-भाव से ऊपर नहीं