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एक अलाह के मैं कुरबानी । दिल ओझल मेरा दिलजानी ।।

धरनीदास जी

एक अलाह के मैं कुरबानी । दिल ओझल मेरा दिलजानी ।।

धरनीदास जी

MORE BYधरनीदास जी

    एक अलाह के मैं कुरबानी दिल ओझल मेरा दिलजानी ।।

    तू मेरा साहब मैं तेरा बन्दा तू मेरि सभी हवस पहिंचन्दा ।।

    बार बार तुम कहँ सिर नावौं जानि जरूर तुम्हैं गोहरावौं ।।

    तुमहिं हमारे मक्का मदीना तुमहीं रोजा रिजिक रोजीना ।।

    तुमहिं कोरान खतम खतमाना तुम तसबी अरु दीन इमाना ।।

    मैं आसिक महबूब तू दरसा बेगर तोहि जहान जहर सा ।।

    देहु दिदार दिलासा एही नातर जाव बिनसि बरु देंही ।।

    कादिर तुमहिं कदर को जाना मैं हिन्दु किधों मूसलमाना ।।

    धरनीदास खड़े दरवाजा सब के तुमहिं गरीब निवाजा ।।

    ।। 4 ।।

    मैं निरगुनियाँ गुन नहिं जाना एक धनी के हाथ बिकाना ।।

    सोइ प्रभु पक्का मैं अति कच्चा मैं झूँठा मेरा साहब सच्चा ।।

    मैं ओछा मेरा साहब पूरा मैं कायर मेरा साहब सूरा ।।

    मैं मूरख मेरा प्रभु ज्ञाता मैं किरपिन मेरा साहब दाता ।।

    धरनी मन मानो इक ठाउँ सो प्रभु जीवो में मरिजाउँ ।।

    ।। 5 ।।

    दूरि भाई खसम खुदाई है हाजिर पहिचानि जाई ।।

    ढूँढ़ो अपना एही वजूदा बैठा मालिक महल मजूदा ।।

    जा को साहब देत वफीक चारि पियाला करु तहकीक ।।

    महरम कोइ मिले जो यार पल में पहुँचावै दरबार ।।

    धरनी बखत-बलँदी सोइ जाकी नजरि तमासा होइ ।।

    ।। 6 ।।

    एक धनी धन मोरा हो एक धनी धन मोरा हो ।।

    काहू के धन सोना रूपा, काहू के हाथी घोरा हो

    काहू के मनि मानिक मोती, एक धनी धन मोरा हो ।।

    राज हरै जरै अगिन तें, कैसहु पाय चोरा हो

    खरचत खात सिरात कबहिं नहिं, घाट बाट नहिं छोरा हो ।।

    नहिं सँदूक नहिं भुइँ खनि गाड़ो, नहिं पट घालि मरोरा हो

    नैन के ओझल पलकन राखों, साँझ दिवस निसि भोरा हो ।।

    जब धन लै मनि बेचन चाहे, तीनि हाट टकटोरा हो

    कोई बस्तु नाहिं ओहि जोगे, जो मोलऊँ सो थोरा हो ।।

    जा धन तें जन भये धनी बहु, हिंदू तुरुक करोरा हो

    सो धन धरनी सहजहिं पायो, केवल सतगुरु के निहोरा हो ।।

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