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ना'त-ओ-मनक़बत
जल्वा-ए-शाह-ए-अ’रब है जल्वा-ए-बाबा फ़रीदइस लिए रश्क-ए-क़मर है चेहरा-ए-बाबा फ़रीद
शहबाज़ असदक़
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ना'त-ओ-मनक़बत
है दिल में जल्वा-ए-रुख़-ए-ताबान-ए-मुस्तफ़ाक़िंदील-ए-का'बा है तह-ए-दामान-ए-मुस्तफ़ा
शकील बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
जल्वा-ए-नूर-ए-ख़ुदा सल्ले-'अला कुछ और है'अज़्मत-ए-मौला 'अली शेर-ए-ख़ुदा कुछ और है
महमूद अहमद रब्बानी
ग़ज़ल
गया है जब से दिखा जल्वा वो परी-रुख़्सारन ख़्वाब दीदा-ए-गिर्यां में है न दिल को क़रार
मीर मोहम्मद बेदार
ना'त-ओ-मनक़बत
आओ तो आओ देखो जल्वा सदरुद्दीन बुख़ारी काआज उठा है रुख़ से पर्दा सदरुद्दीन बुख़ारी का
हाफ़िज़ ख़ुर्शीद आलम
कलाम
आँख खुलते ही था इक जल्वा नज़र के सामनेक्या कहूँ मैं आगया क्या क्या नज़र के सामने