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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
हस्त 'आक़िल हर ज़माने दर ग़मे पैदा शुदनहस्त 'आशिक़ हर ज़माने बे-ख़ुद-ओ-शैदा शुदन
रूमी
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कलाम
यूँ तो बंदे का ज़माने में है बंदा 'आशिक़पर ख़ुदा भी कहीं होता है किसी का 'आशिक़
शाह फ़ाइक़ शहबाज़ी
बैत
माना कि ज़माने में कोई तुम सा नहीं है
माना कि ज़माने में कोई तुम सा नहीं हैहक़ ये है कि कुछ मेरा तख़य्युल भी हसीं है
क़मर बदायूँनी
कलाम
फिरे ज़माने में चार जानिब निगार यकता तुम्हीं को देखाहसीन देखा जमील देखा व-लेक तुम सा तुम्हीं को देखा
अज्ञात
ना'त-ओ-मनक़बत
ज़माने भर में फिर मेरी निराली शान हो जाएअगर तुम से मेरे ख़्वाजा मेरी पहचान हो जाए
मनाज़िर चिश्ती ग़जाली
ग़ज़ल
इस ज़माने में है हर शख़्स को दुनिया की तलाशबस ग़नीमत है जिसे कुछ भी हो उ'क़्बा की तलाश
शाह तुराब अली क़लंदर
सूफ़ी लेख
उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
A.क़ाज़ी अहमद क़ाज़ीफ़ैज़ बख़्शी का ज़माने में फ़साना हो गया
सुमन मिश्र
दकनी सूफ़ी काव्य
तूतीनामा- चुन उस गोहराँ के समन्द का गम्भीर
जेते उस ज़माने के सौदागराँउते उसके आगे थे जूँ चाकरॉ