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दकनी सूफ़ी काव्य
रोज़ोतुल इतहार
।। दरबयान दादन ज़हर दुश्मन दोस्तनुमाँ बाआन जनाबहिदायत इन्तमा ।।
नवाज़िद अली ख़ान शैदा
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गूजरी सूफ़ी काव्य
जुलेख़ा का क्रोध
तिरे इस इश्क़ का डसिया मुझे नाग,उठी सगले बदन बिच ज़हर की आग।
अमीन गुजराती
दकनी सूफ़ी काव्य
दीवाने सुलतान
करता है बद लच्छन होर लेता है नेकनामीदिल में है ज़हर क़ातिल शहद व शकर अधर पर
शाह सुल्तान सानी
सूफ़ी लेख
शैख़ सा’दी का तख़ल्लुस किस सा’द के नाम पर है ?
व गर न राई’-ए-ख़ल्क़स्त ज़हर-ए-मारश बादकि हर चे मी ख़ुरद ऊ जिज़्य:-ए-मुसलमानीस्त