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शे'र
ख़फ़ा सय्याद है चीं बर जबीं गुलचीं है क्या बाइ'सबुरा किस का किया तक़्सीर की हम ने भला किस की
आसी गाज़ीपुरी
ना'त-ओ-मनक़बत
अमीर बख़्श साबरी
ग़ज़ल
नज़र जिस की पड़ी उस ने पय-ए-सज्दः जबीं रख दीये कैसी दिलकशी उस बुत में सूरत-आफ़रीं रख दी
मुज़्तर ख़ैराबादी
बैत
ए सुब्ह-ए-सआ'दत ज़े-जबीं तू हुवैदा
ए सुब्ह-ए-सआ'दत ज़े-जबीं तू हुवैदाईं हुस्न चे हुस्न अस्त तबारक तआ'ला
फरोग़ वारसी
कलाम
ईसा अमृतसरी
ग़ज़ल
तसव्वुर 'अर्श पर है वक़्फ़-ए-सज्दा है जबीं मेरीमिरा अब पूछना क्या आसमाँ मेरा ज़मीं मेरी
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
दे के ग़म उफ़ मह-जबीं 'इशरत का सामाँ ले चलादिल मिरा ज़ख़्मी किया और दीन-ओ-ईमाँ ले चला