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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ जान-ए-मा ऐ जान-ए-मा ऐ कुफ़्र-ओ-ईमान-ए-माख़्वाहम कि ईं ख़र-मोहरः रा गौहर कुनी दर कान-ए-मा
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
वासिफ़ रज़ा वासिफ़
ना'त-ओ-मनक़बत
जान-ए-जान-ए-मुस्तफ़ा-ओ-मुर्तज़ा आने को हैसय्यदा की गोद में इक मह-लक़ा आने को है
सय्यद फ़ैज़ान वारसी
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कलाम
जिस को मैं जान-ए-'अज़ीज़ अपना समझता था 'तुराब''इश्क़ में वो भी हुआ मुझ से बेगाना ऐ दिल
शाह तुराब अली क़लंदर
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत हसन जान अबुल उलाई
हमारे सूबा-ए-बिहार में शहसराम को ख़ास दर्जा हासिल है।यहाँ औलिया ओ अस्फ़िया और शाहान ए ज़माना
रय्यान अबुलउलाई
फ़ारसी कलाम
जान-ए-मुश्ताक़ाँ ज़े याद-ए-ख़्वेश शादाँ करद: ईरस्म-ए-ताज़: कर्द: ई ख़ुद रा चू पिन्हाँ करद: ई
मुमताज़ गंगोही
सूफ़ी कहावत
ख़ुद पसंदी जान-ए-मन बुरहान-ए-नादानी बुवद
स्वार्थपरता, मेरे प्रिय मित्र, अज्ञान (या मूर्खता) का सबूत है
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
तू शाह-ए-ख़ूबाँ तू जान-ए-जानाँ है चेहरा उम्मुल-किताब तेरान बन सकी है न बन सकेगा मिसाल तेरी जवाब तेरा
साइम चिश्ती
कलाम
पीर नसीरुद्दीन नसीर
फ़ारसी कलाम
तू जान-ए-पाके सर-ब-सर नै आब-ओ-ख़ाक ऐ नाज़नींवल्लाह ज़े जाँ हम पाक-तर रूही फ़िदाक ऐ नाज़नीं
जामी
शे'र
कूचे में तिरे ऐ जान-ए-ग़ज़ल ये राज़ खुला हम पर आ करग़म भी तो इनायत है तेरी हम ग़म का मुदावा भूल गए
अब्दुल हादी काविश
ना'त-ओ-मनक़बत
इक क़रार-ए-जाँ सब जान-ए-क़रार-ए-फ़ातिमालुट गया है दश्त में बाग़-ए-बहार-ए-फ़ातिमा