जान-ए-गुल जान-ए-फ़स्ल-ए-बहाराँ सरवर-ए-अंबिया आ रहे हैं
जान-ए-गुल जान-ए-फ़स्ल-ए-बहाराँ सरवर-ए-अंबिया आ रहे हैं
वासिफ़ रज़ा वासिफ़
MORE BYवासिफ़ रज़ा वासिफ़
जान-ए-गुल जान-ए-फ़स्ल-ए-बहाराँ सरवर-ए-अंबिया आ रहे हैं
तहनियत पेश है अहल-ए-ईमाँ सरवर-ए-अंबिया आ रहे हैं
किस क़दर लुत्फ़-ए-आवर है मौसम नस्ब हैं हर-सू ख़ुशियों के परचम
है फ़ज़ा-ए-जहाँ नूर-अफ़शाँ सरवर-ए-अंबिया आ रहे हैं
जिन के सर पर है ताज-ए-रफ़’ना जिन की तबशीर देते हैं ई’सा
रब की कुल सल्तनत के वो सुल्ताँ सरवर-ए-अंबिया आ रहे हैं
झूम कर बरसा है अब्र-ए-रहमत खिल रहे हैं गुल-ए-ख़ैर-ओ-बरकत
लहलहाने लगी किश्त-ए-वीराँ सरवर-ए-अंबिया आ रहे हैं
शम्-ए'-ज़ुल्मत लगी टिमटिमाने अमन का हर-सू फैला उजाला
या'नी इंसाफ़ का मेहर-ए-ताबाँ सरवर-ए-अंबिया आ रहे हैं
जश्न-ए-यौम-ए-विलादत मनाओ घर गली और मोहल्ले सजाओ
शाह-राहों पे भी हो चराग़ाँ सरवर-ए-अंबिया आ रहे हैं
ख़त्म हो जाएगी यास-ओ-हसरत और अ'ता होगा जाम-ए-मसर्रत
होगा पूरा हर इक दिल का अरमाँ सरवर-ए-अंबिया आ रहे हैं
जहल का अब छुटेगा अँधेरा चार-सू होगी बस ज़ौ-इक़रा
इ'ल्म की ले के शम्-ए’-दरख़्शाँ सरवर-ए-अंबिया आ रहे हैं
हाथ आया है ख़ुशियों का गौहर सर पे 'वासिफ़' है रहमत की चादर
क़ल्ब अहल-ए-मोहब्बत है शादाँ सरवर-ए-अंबिया आ रहे हैं
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