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ग़ज़ल
ख़ून का क़तरः नहीं है चश्म-ए-गिर्यां अब तलकउज़्व सारे जल गए पर दिल है बरियाँ अब तलक
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
मेरी आँख बंद थी जब तलक वो नज़र में नूर-ए-जमाल थाखुली आँख तो ना ख़बर रही कि वो ख़्वाब था कि ख़्याल था
बहादुर शाह ज़फ़र
बैत
अब तलक तुझ पे न इस राज़ का इज़हार किया
अब तलक तुझ पे न इस राज़ का इज़हार कियाजान आती है मेरी जान जो तू आती है
शाह तक़िउद्दिन मनेरी
शे'र
वो कि इक मुद्दत तलक जिस को भला कहता रहाआह अब किस मुँह से ज़िक्र उस की बुराई का करूँ
एहसनुल्लाह ख़ाँ बयान
सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
डूबे हैं रंग में मद-होश से आगाह तलकआज रंगीं है र’ईयत से लगा शाह तलक