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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी कहानी
बादशाह का एक दरख़्त की तलाश करना कि जो उस का मेवा खाए वो ना मरे- दफ़्तर-ए-दोउम
एक अ’क़्ल-मंद ने क़िस्से के तौर पर बयान किया कि हिन्दोस्तान में एक दरख़्त है जो
रूमी
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ग़ज़ल
सुकून-ए-क़ल्ब किसी को नहीं मयस्सर आजशिकस्त-ए-ख़्वाब है हर शख़्स का मुक़द्दर आज
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
कलाम
ज़ख़्मों से कलेजे को भर दे बर्बाद सुकून-ए-दिल कर देओ नाज़ भरी चितवन वाले आ और मुझे बिस्मिल कर दे
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
सुकून-ए-मुस्तक़िल दिल बे-तमन्ना शैख़ की सोहबतये जन्नत है तो इस जन्नत से दोज़ख़ क्या बुरा होगा
हरी चंद अख़्तर
बैत
तलाश में हैं गुरेज़ाँ वुजूद के ज़र्रात
तलाश में हैं गुरेज़ाँ वुजूद के ज़र्रातकहाँ से आए कहाँ जाएँगे ख़ुदा मा'लूम
क़मर बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
फ़राज़ वारसी
सूफ़ी उद्धरण
इन्सान का दिल तोड़ने वाला शख़्स अल्लाह की तलाश नहीं कर सकता।
इन्सान का दिल तोड़ने वाला शख़्स अल्लाह की तलाश नहीं कर सकता।
वासिफ़ अली वासिफ़
ग़ज़ल
इस ज़माने में है हर शख़्स को दुनिया की तलाशबस ग़नीमत है जिसे कुछ भी हो उ'क़्बा की तलाश